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व्यंग्य: समीक्षक गया MSG देखने, घर पर शुरू हुआ महामृत्युंजय जाप

किसे पसंद नही आएगी ऐसी नौकरी जहां हर शुक्रवार रिलीज हुई नई फिल्म का पहला शो देखने को मिले? लेकिन यही नौकरी गौरव के गले की हड्डी बन जाएगी ये खुद गौरव ने कभी नहीं सोचा था, यूं तो पत्रकारिता से जुड़े गौरव ने कई अच्छी-बुरी फिल्में बतौर समीक्षक देखी-झेलीं और पूरी बहादुरी से उनकी समीक्षा लिखी पर उन्हें कहां पता था एक दिन शौक को काम बनाने के फेर में गुरमीत राम रहीम सिंह इंसान की MSG देखने भी जाना पड़ सकता है.

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किसे पसंद नही आएगी ऐसी नौकरी जहां हर शुक्रवार रिलीज हुई नई फिल्म का पहला शो देखने को मिले? लेकिन यही नौकरी गौरव के गले की हड्डी बन जाएगी ये खुद गौरव ने कभी नहीं सोचा था, यूं तो पत्रकारिता से जुड़े गौरव ने कई अच्छी-बुरी फिल्में बतौर समीक्षक देखी-झेलीं और पूरी बहादुरी से उनकी समीक्षा लिखी पर उन्हें कहां पता था एक दिन शौक को काम बनाने के फेर में गुरमीत राम रहीम सिंह इंसान की MSG देखने भी जाना पड़ सकता है.

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Film review: 'MSG' देखकर समझिए राम रहीम और उनके काम को

हुआ कुछ यूं कि हफ्ते के शुरू में ही उन्हें इस बात की भनक पड़ गई थी कि ऑफिस वाले उनके खिलाफ कोई साजिश रच रहे हैं, पहले तो उन्हें लगा कि ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार’ सरीखी भाईचारे वाली कॉलरट्यून रखने और आये दिन कोलियां भरने वाले उनके साथी उनके साथ ऐसा कुछ गलत नहीं कर सकते, लेकिन उनका मासूम सी शकल वाले अपने सहकर्मियों से भरोसा उस वक्त उठ गया जब उन्हें बॉस की तरफ से MSG की समीक्षा लिखने का फरमान आ गया.

घरवालों ने ये खबर मिलते ही आनन-फानन में महामृत्युंजय मन्त्र का जाप शुरू करा दिया ये अनुष्ठान तब तक चलेगा जब तक गौरव फिल्म देखकर सकुशल घर वापस नहीं आ जाते, घरवालों से जब हमने इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि गौरव को बचपन से दो ही चीजों का शौक रहा पहला फिल्में देखने का, दूसरा फौज में जाने का, फिल्मों के लिहाज से गौरव की किलनिया मुस्कान कुछ ज्यादा ही क्यूट थी और फौज के हिसाब से ‘दुश्मन मुस्कान से नहीं मारे जाते’. फौज में जान का जोखिम देखते हुए घरवालों ने उन्हें पत्रकारिता की ओर डहकाया लेकिन जान के जोखिम ने यहां भी उनका पीछा कहां छोड़ा?

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कहते हैं बुरे वक्त में इंसान की असल पहचान भी हो जाती है, साथ ही दोस्तों और दुश्मनों की भी. गौरव ने इतने पर भी हार नही मानी, फिल्म की रिलीज के ठीक एक दिन पहले उन्होंने फेसबुक पर अपनी चौदह सौ बत्तीस नरमुण्डों वाली फ्रेण्डलिस्ट के बीच सैंतालिस जनों को टैग कर जानना चाहा कि क्या कोई उनके साथ MSG देखने की हिम्मत जुटा सकता है. आश्चर्य इस बात का कि उस पोस्ट पर आठ लाइक और छः कमेन्ट भी आए, लेकिन अगले दिन किसी की बेटी का मन्थली टेस्ट था तो किसी की सास के जोड़ों में दर्द.

खैर इतने सबके बाद उन्हें अकेले ही फिल्म देखने जाना पड़ा. गौरव बताते हैं उन्हें भले पता था कि बाहर ऑफिस वालों ने उनकी सैलरी से पैसे काट आपात स्थिति के लिए एम्बुलेंस खड़ी कर रखी है, लेकिन दिल में डर तब भी था. थियेटर के अंधेरे में कदम रखते-रखते एक बार तो उनके दिल में नौकरी छोड़ यहीं से लौट जाने का ख्याल आया, लेकिन भरभराकर आई भीड़ ने उन्हें अन्दर जाने को मजबूर कर दिया. ये भीड़ दिल्ली कांग्रेस के हारे हुए सत्तर नेताओं की थी जो MSG देख आत्महत्या करने आये थे.

स्क्रीन पर ‘मैसेंजर’ को पहला डायलॉग बोलते देख एकबारगी तो गौरव की चीख ही निकल गई, लेकिन जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया वैसे-वैसे ‘पापाजी’ की भारी-भरकम आवाज से गौरव का डर भी घटता गया. आधे घन्टे में उनमें वैराग्य भाव जगने लगा एक घन्टे बाद गौरव समाधि की अवस्था में थे. थियेटर से बाहर आकर सलाइन की बोतल निकलवाते हुए अजीब से स्वर में गौरव ने फोन कर घरवालों से सिर्फ इतना कहा कि ‘आज उन्हें सच का पता चल चुका है अब से उन्हें गौरव चतुर्वेदी इंसान बुलाया जाए.’

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