पशुओं के अधिकारों का दायरा बढ़ाते हुये सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू (सांडों की लड़ाई) के लिये बैलों के उपयोग या फिर बैलगाड़ियों की दौड़ जैसे आयोजन पर देश भर में प्रतिबंध लगा दिया. कोर्ट ने आशा व्यक्त की कि संसद पशुओं के अधिकारों को संवैधानिक अधिकारों के समकक्ष करेगी.
शीर्ष अदालत ने सरकारों और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को पशुओं को अनावश्यक पीड़ा पहुंचाने से रोकने के लिये उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि पशुओं सहित सभी जीवजंतुओं में स्वाभाविक गरिमा और शांतिपूर्ण तरीके से जीने का अधिकार होता है और उनकी बेहतरी के अधिकारों का संरक्षण होना चाहिए.
जस्टिस के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि पशुओं के अधिकारों की रक्षा करना कोर्ट का कर्तव्य है क्योंकि वे मानव की तुलना में अपनी देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं.
कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र या देश के अन्य हिस्सों में बैलों को पशुओं के प्रदर्शन के लिये न तो जल्लीकट्टू के आयोजन में और न ही बैलगाड़ी की दौड़ में इस्तेमाल किया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि जल्लीकट्टू में मनुष्य की कार्रवाई और बैलों द्वारा अनुभव किये जा रहे भय और पीड़ा के बीच संबंध को दर्शाता है और बैलों के प्रति अत्याचार और क्रूरता अकल्पनीय है.
पेटा ने किया स्वागत
पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट आफ एनीमल्स (पेटा) ने दक्षिण तमिलनाडु में पोंगल के समय सांडों को काबू में करने वाले खेल जल्लीकट्टू को प्रतिबंधित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महत्वपूर्ण बताते हुए उसका स्वागत किया. भारत में पेटा के पशु चिकित्सा मामलों के निदेशक डा. मणिलाल वल्लियाते ने एक बयान में कहा, यह भारत में पशुओं के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है. साल दर साल जल्लीकट्टू या सांडों की दौड़ में अदालत के दिशानिर्देशों या कानूनों का उल्लंघन किया गया तथा दुखद रूप से उनकी मृत्यु तक हुई. इससे लोग भी प्रभावित हुए.
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सांडों से क्रूरता अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी और पशु हमारे संरक्षण और सम्मान के हकदार हैं.’
जयराम रमेश भी हुए खुश
केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने जलीकट्टू आयोजनों या देशभर में आयोजित की जाने वाली बैलगाडि़यों की दौड़ में बैलों के इस्तेमाल पर लगाए गए बैन का स्वागत करते हुए उम्मीद जतायी कि इससे यह बर्बर व्यवहार समाप्त हो जाएगा. 2011 में पर्यावरण मंत्री के पद पर रहते हुए रमेश ने देशभर से बड़ी संख्या में जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं की ओर से मिले आवेदनों पर कार्रवाई करते हुए जलीकट्टू आयोजन में बैलों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने की पहल की थी.
रमेश ने बताया कि उस समय पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 22 के तहत बैलों के प्रदर्शन करने पर रोक लगाने संबंधी अधिसूचना जारी की गयी थी. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को बरकरार रखा है और तमिलनाडु जलीकट्टू अधिनियम 2009 को रद्द कर दिया.’
ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं. यह बर्बर व्यवहार को समाप्त करेगा.’