सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों के 20 हजार करोड़ रुपये वापस करने के मामले में सहारा समूह की ना-नुकुर के मामले में सख्ती करते हुये इसके मुखिया सुब्रत राय के देश से बाहर जाने पर रोक लगाने के साथ ही इसकी संपत्ति बेचने पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि हर प्रकार के विवादों से मुक्त 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज सेबी को सौंपने के उसके आदेश का सहारा समूह ने ‘अक्षरश:’ पालन नहीं किया है. कोर्ट ने इसके साथ ही सुब्रत राय और समूह के अन्य निदेशकों वंदना भार्गव, रवि शंकर दुबे तथा अशोक राय चौधरी के देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया.
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि समूह की किसी भी संपत्ति की न्यायालय की अनुमति के बगैर बिक्री नहीं की जायेगी. इस मामले की सुनवाई के दौरान सुबत राय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुन्दरम ने न्यायालय के आदेश पर अमल के बारे में न्यायाधीशों को संतुष्ट करने का अंतिम प्रयास किया लेकिन सेबी ने उनकी सभी दलीलों को ध्वस्त कर दिया. सेबी ने कहा कि सहारा समूह ने अपनी संपत्ति का अधिक मूल्यांकन किया है और उसने 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिकाना हक से संबंधित मूल दस्तावेज नहीं सौंपे हैं.
सेबी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दात्तार ने न्यायालय को सूचित किया कि वर्सोवा में 106 एकड़ भूमि का मूल्यांकन 19000 करोड़ रुपये किया गया है जबकि इसकी आधिकारिक कीमत 118.42 करोड़ रुपये ही है. उन्होंने कहा कि इस भूमि का किसी भी तरह से उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह हरित क्षेत्र में आती है.
न्यायाधीश उनके इस कथन से सहमत थे कि इस तरह के मूल्यांकन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने दात्तार से कहा कि सहारा समूह की दूसरी संपत्तियों का पता लगया जाये जिनका 20 हजार करोड़ रुपये की जमानत के रूप में विचार किया जा सके. इस बीच, न्यायालय ने राय के देश से बाहर जाने पर रोक लगाते हुये इस मामले की सुनवाई 11 दिसंबर तक के लिये स्थगित कर दी. बाजार नियामक ने न्यायालय से अनुरोध किया था कि उसके निर्देशों पर अमल करने में विफल रहने के कारण सुब्रत राय का पासपोर्ट जब्त किया जाये.
सहारा ने सेबी को दो भूखंडों के दस्तावेज सौंपे थे. इनमें से एक संपत्ति वर्सोवा में 106 एकड़ की है जिसकी कीमत 19000 करोड़ रुपये होने का दावा किया गया है जबकि दूसरी संपत्ति वसई में 200 एकड़ की है जिसकी कीमत एक हजार करोड़ रुपये होने का अनुमान है. सेबी ने इन संपित्तयों के मूल्यांकन पर सवाल उठाये हैं.
न्यायालय ने 28 अक्टूबर को इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुये कहा था कि वह ‘लुका छिपी’ का खेल खेल रहे हैं और उन पर अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने सहारा समूह को निर्देश दिया कि 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्तियों के मालिकाना हक के दस्तावेज तीन सप्ताह के भीतर सेबी को सौंपे जायें. न्यायालय ने आगाह किया था कि उसके आदेश पर संतोषप्रद तरीके से अमल नहीं किया गया तो फिर सुब्रत राय भारत से बाहर नहीं जा सकेंगे. न्यायालय ने कहा था कि वह निवेशकों का धन सेबी को लौटाने से बच नहीं सकता है.
न्यायालय ने सहारा समूह से अपनी संपत्तियों के मूल्यांकन की रिपोर्ट भी सेबी को सौंपने का निर्देश दिया था. न्यायालय सुब्रत राय, उनकी दो फर्म सहारा इंडिया रियल इस्टेट कार्प लि और सहारा इंडिया हाउसिंग इंवेस्टमेन्ट कार्प लि तथा उनके निदेशकों के खिलाफ सेबी की अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 31 अगस्त को सहारा समूह को नवंबर के अंत तक निवेशकों का 24 हजार करोड़ रुपया लौटाने का निर्देश दिया था. कंपनी को 5120 करोड़ रुपये तत्काल और दस हजार करोड़ रुपये जनवरी के प्रथम सप्ताह तथा शेष राशि का फरवरी के प्रथम सप्ताह में भुगतान करने का निर्देश दिया गया था. सहारा समूह ने पांच दिसंबर को 5120 करोड़ रुपये का ड्राफ्ट दे दिया था लेकिन शेष राशि का भुगतान करने में वह विफल रहा है.