सिंधु जल समझौते को रद्द करने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ता एम एल शर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि यह औपचारिक रूप से संधि नहीं, बल्कि दो देशों के नेताओं के बीच एक निजी रज़ामंदी भर है. इसको औपचारिक रूप से दोनों सरकारों ने मान्यता नहीं दी है. इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर नहीं हुए थे. चीफ जस्टिस ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह जल समझौता पिछले 50 सालों से दोनों देशों के बीच सही ढंग से चल रहा है.
गौरतलब है कि सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के जल बंटवारे को लेकर एक संधि है. तीन हजार 180 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी एशिया की सबसे लंबी नदी है, जो तिब्बत के मानसरोवर से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब होते हुए गिलगिट-बाल्टिस्तान, खैबर पख्तुनख्वा, पाक के हिस्से वाले पंजाब, सिंध से गुजरते हुए अरब सागर में गिरती है. 1960 के समझौते के अनुसार, भारत को पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों रावी, ब्यास और सतलज पर पूर्ण नियंत्रण का अधिकार दिया गया, और पाकिस्तान को पश्चिमी क्षेत्र की सिंध, चिनाब और झेलम के पानी के इस्तेमाल का हक दिया गया.
पिछले महीने की 20 तारीख को ही पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में स्थायी सिंधु आयोग की बैठक में भाग लेने के लिए 10 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल गया था. इसके पहले स्थायी सिंधु जल आयोग की आखिरी बैठक मई 2015 में हुई थी. इसके बाद पाकिस्तान रतल और किशनगंगा परियोजनाओं पर अपने ऐतराज को वर्ल्ड बैंक लेकर गया था. उरी हमलों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते. हालांकि सिंधु जल समझौता दोनों देशों के बीच तमाम टकरावों के बावजूद बरकरार है.
1960 में हुआ था समझौता
1960 में हुए सिंधु जल समझौते पर नेहरू और अयूब खान ने दस्तखत किए थे. 7 साल पहले उरी-2 और चुटक हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स पर पाकिस्तान की चिंताओं को उसके साथ बातचीत के जरिए ही दूर किया गया था. पाक ने बारामुला के
240 मेगावॉट वाले उरी-2 और करगिल के 44 मेगावॉट के चुटक प्रोजेक्ट्स पर ऐतराज जताया था और कहा था कि इससे समझौते के तहत पाक को मिलने वाले पानी में मुश्किल आएगी. हालांकि, मई 2010 में हुई बातचीत के बाद पाकिस्तान ने
अपने ऐतराज वापस ले लिए थे.