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सूखा राहत याचिका पर SC का फैसला, केंद्र को दिए निर्देश

सूखा प्रभावित राज्यों में राहत के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया. सर्वोच्च अदालत ने आपदा प्रबंधन एक्ट का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया.

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सूखा प्रभावित राज्यों में राहत के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया. सर्वोच्च अदालत ने आपदा प्रबंधन एक्ट का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया.

स्वराज अभियान की तरफ से दायर की गयी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सूखा जैसी आपदा के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अंतिम जिम्मेदारी निश्चित रूप से केंद्र सरकार की है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन कानून 2015 के अनुसार अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने का निर्देश दिया.

पिछले एक दशक से इन संवैधानिक प्रावधानों को पूरा नहीं करने पर अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वो आपदा प्रबंधन कानून के अनुसार 1 महीने के अन्दर एक राष्ट्रीय आपदा शमन कोष का गठन करे. 6 महीने के अन्दर राष्ट्रीय आपदा उत्तरदायी बल और जितना जल्दी हो सके एक राष्ट्रीय आपदा योजना बने. कोर्ट ने केंद्र सरकार को 'वित्तीय रूप से उदार' बनने को कहते हुए बोला की ऐसी गंभीर स्थिति में वो अपने हाथ पीछे नहीं खींच सकती. कोर्ट ने कहा कि आपदा प्रबंधन कानून के अनुसार सूखा आपदा की परिभाषा में ही आता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने 25 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बताया जा रहा है कि कोर्ट अपना फैसला दो हिस्सों में देगा. याचिका में मांग की गई है कि देश के 12 राज्य भीषण सूखे की चपेट में हैं.

फैसले का पहला भाग आया सामने
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस एन. वी रमन्ना की बेंच ने स्वराज अभियान द्वारा देश में सूखे की स्थिति को लेकर दायर याचिका पर अपने फैसले का पहला भाग बुधवार को बताया. स्वराज अभियान की याचिका में दस प्रार्थनाएं की गईं थीं जिसमे सूखा घोषणा की पद्धति से लेकर लघुकालीन और दीर्घकालीन राहत शमन उपाय तक शामिल थे.

 

फैसले के पहले भाग में सूखा घोषणा के कानूनी, वैचारिक और पद्धति से संबंधित सवाल और राज्य की जिम्मेदारी है. आने वाले फैसले के बाकी हिस्से में अतिरिक्त खाद्यान्न, मनरेगा, मिड-डे मील, पशु चारा, फसल हानि मुआवजा और ऋण पुनर्गठन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे के होने की उम्मीद है.

कोर्ट ने बताई इच्छाशक्ति की कमी
सुप्रीम कोर्ट ने 53 पेज के फैसले में लोकमान्य तिलक के कथन को याद करते हुए लिखा है कि 'असल समस्या संसाधनों या क्षमता की कमी नहीं है, बल्कि इच्छाशक्ति की कमी है'. अदालत ने पाया कि इस जनहित याचिका ने सरकार की इच्छाशक्ति की कमी को अच्छे से उजागर किया है.

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इस फैसले में ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की एक मजबूत दलील सामने आई है. कोर्ट ने कहा की, 'कई बार ऐसा होता है कि वंचित लोग अदालत तक नहीं पहुंच पाते और उन्हें न्याय नहीं मिल पाता, उन्हें किसी की जरूरत होती है जो उनकी बात रख सके. एक कल्याणकारी राज्य प्रभावी ढंग से कैसे काम कर सकता है जब वो वंचित और जरूरतमंद लोगों की बात सुनना तो दूर, साझा भी नहीं कर सकता?'

कोर्ट ने दिए निर्देश
कोर्ट ने सवाल किया है कि 'क्या हम इस तरह एक बड़ी आबादी की दुर्दशा की अनदेखी बर्दाश्त कर सकते हैं?.' स्वराज अभियान की दलील कि सूखे की मौजूदा घोषणा प्रणाली अवैज्ञानिक, पुरातन और मनमानी-पूर्ण है से सहमत होते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि सूखे की घोषणा के लिए एक मानक ढांचा विकसित करे और इसको सूखा प्रबंधन के मैनुअल में शामिल करे. इस ढांचे में घोषणा के मानक नामकरण, समय और इकाई, ध्यान में रखने वाले कारक, माप की पद्धति और विभिन्न कारकों के वजन को शामिल किया जाए.

मैनुअल में सूखे के रोकथाम, तैयारियों और शमन के प्रावधान जरूर होने चाहिए. अदालत ने केंद्र सरकार को इस साल दिसंबर तक मैनुअल को तैयार करने के लिए कहा है.

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कोर्ट ने बिहार, हरियाणा और गुजरात के 'शुतुरमुर्ग-रवैया' और सूखे की स्थिति से इंकार की अवस्था पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि बिहार और हरियाणा में और गुजरात के अधिक से अधिक भागों में सूखे की घोषणा पर पुनर्विचार के लिए एक मजबूत दलील दी गई है.

गुजरात की आलोचना
अदालत ने बिहार सरकार को दोषी पाया कि शायद इनका खेल चुन-चुन कर वो जानकारीयां एवं सामग्री प्रस्तुत करने की है जो ना इनके फायदे का है और ना ही नागरिकों के हित का है और असहज सूचना एवं सामग्री को छुपा लिया गया है. अपनी स्थिति में 'अंतर्निहित विरोधाभास' के लिए और कुछ जिलों में सूखे की अंतिम घोषणा में अत्यधिक विलंब के लिए गुजरात सरकार की कड़ी आलोचना हुई.

भारत सरकार और हरियाणा सरकार के सूखे के आकलन की पद्धति में भारी असमानता सामने आई है. कोर्ट ने भारत सरकार के कृषि विभाग में सचिव को निर्देश दिया है कि सूखे की स्थिति का जायजा लेने के लिए इन तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ एक सप्ताह के भीतर एक बैठक करें और सूखे की स्थिति में उन्हें सूखा की घोषणा करने के लिए कहें.

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