जस्टिस पिनाकी घोष ने शनिवार को देश के पहले लोकपाल प्रमुख के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें शपथ दिलाई. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को लोकपाल की नियुक्ति को मंजूरी दी थी.
एक आधिकारिक आदेश के अनुसार सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की पूर्व प्रमुख अर्चना रामसुंदरम, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, महेंद्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम को लोकपाल का गैर न्यायिक सदस्य नियुक्त किया गया है.
जस्टिस दिलीप बी भोंसले, जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी को भ्रष्टाचार निरोधक निकाय का न्यायिक सदस्य नियुक्त किया गया है. ये नियुक्तियां उस तारीख से प्रभावी होंगी, जिस दिन वे अपने-अपने पद का कार्यभार संभालेंगे.
जस्टिस घोष मई, 2017 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. वे 29 जून, 2017 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्य हैं. इन नियुक्तियों की सिफारिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत चयन समिति ने की थी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उसे मंजूरी दी.
लोकपाल और लोकायुक्त कानून के तहत कुछ श्रेणियों के सरकारी सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है. यह कानून 2013 में पारित किया गया था.
ये नियुक्तियां सात मार्च को उच्चतम न्यायालय के अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से 10 दिन के भीतर लोकपाल चयन समिति की बैठक की संभावित तारीख के बारे में सूचित करने को कहने के एक पखवाड़े बाद हुई हैं. न्यायालय के इस आदेश के बाद 15 मार्च को चयन समिति की बैठक हुई थी.
नियमों के अनुसार लोकपाल समिति में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं. इनमें से चार न्यायिक सदस्य होने चाहिए, इनमें से कम से कम 50 फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाएं होनी चाहिए. चयन के पश्चात अध्यक्ष और सदस्य पांच साल या 70 साल की आयु तक पद पर रहेंगे.
पहली बार 1967 में उठा था मुद्दा
विदेश में लोकपाल जैसी संस्था काफी साल पहले से है, लेकिन भारत में इसका प्रवेश साल 1967 में हुआ. उस वक्त पहली बार भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों को लेकर लोकपाल संस्था की स्थापना का विचार रखा था. हालांकि इसे स्वीकार नहीं किया गया था.
अन्ना ने लड़ी थी बड़ी लड़ाई
इस बिल को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे ने एक अनशन किया और वो एक बड़ी लड़ाई में तब्दील हो गई. उसके बाद लोकसभा ने 27 दिसंबर, 2011 को लोकपाल विधेयक पास किया, फिर 23 नवंबर 2012 को प्रवर समिति को भेजने का फैसला किया. उसके बाद 17 दिसंबर 2013 को राज्यसभा में लोकसभा विधेयक पारित हुआ.