सुप्रीम कोर्ट ने देश में निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए बनाए गए कोष का केंद्र और विभिन्न राज्यों सरकारों द्वारा इस्तेमाल नहीं किए जाने पर दुख जताते करते हुए कहा कि इससे बुरा कुछ और नहीं हो सकता.
इस कोष में 27 हजार करोड़ रुपये हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मूर्खतापूर्ण है कि श्रमिकों के कल्याण के लिए तय धन बाबुओं और विज्ञापनों पर खर्च किया जा रहा है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की सामाजिक न्याय पीठ ने कहा, 'यह चौंकाने वाला और आश्चर्यचकित करने वाला है. इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता. यह बहुत ही दु:खद स्थित है.'
न्यायाधीशों ने इसके साथ ही श्रम मंत्रालय के सचिव को हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि केन्द्र इस धन का किस तरह से इस्तेमाल करना चाहता है. अदालत ने इस मद में धन जमा करने और इसके इस्तेमाल तथा प्रस्तावित उपयोग के बारे में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान सरकार के जवाब पर असंतोष व्यक्त किया.
न्यायाधीशों ने कहा, 'इस धन का लाभान्वितों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. इसका इस्तेमाल बाबुओं के लिए हो रहा है. यह बेतुका है. यदि हम इससे लाभान्वित होने वाले दस व्यक्तियों के नाम आपसे मांगें, तो आप उनके नाम नहीं बता सकेंगे.'
पीठ ने दिल्ली सरकार के रवैये की आलोचना की, जिसने विज्ञापन के लिए धन का प्रावधान किया और ढाई करोड़ रुपये इस मद में खर्च किए. पीठ ने कहा, 'आप विज्ञापन पर ढाई करोड़ रुपये क्यों खर्च कर रहे हैं? हमें लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों की सूची दीजिए.'
इनपुट: भाषा