सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज दो एफआईआर की एसआईटी जांच करवाने की मांग की थी. इस मामले में भट्ट ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत कुछ लोगों पर आरोप लगाया है कि वे इन मामलों में जांच को प्रभावित कर रहे हैं.
बुधवार को गुजरात सरकार की ओर से याचिका का विरोध कर रहे सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि एक आरोपी को मामले में जांच का तरीका चुनने का कोई अधिकार नहीं होता है. कोर्ट ने जिरह के दौरान कुमार ने कहा, 'भट्ट ने मामले में कोर्ट पर एसआईटी जांच बिठाने के दबाव बनाने की भी कोशिश की. उन्होंने मीडिया में अपनी पहचान का फायदा उठाया.'
भट्ट पर ये हैं आरोप
संजीव भट्ट पर गुजरात के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल तुषार मेहता के ईमेल अकाउंट को हैक करने का भी आरोप है. यही नहीं, उन पर एक अधीनस्थ पुलिसकर्मी पर अपने हक में फर्जी शपथ-पत्र बनाने के लिए दबाव बनाने का भी आरोप है.
हालांकि, भट्ट का कहना है कि वह निर्दोष हैं और उन पर लगाए गए सारे आरोप गलत हैं. उनका कहना है कि 2002 गुजरात दंगा मामले में उन्होंने राज्य सरकार के मत से अलग जाकर काम किया था इसलिए उन्हें फंसाया जा रहा है.
अमित शाह के खिलाफ मामला चलाने की थी मांग
गौरतलब है कि भट्ट पहले मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन केंद्र में सरकार बदलने के बाद उन्हें लगता है कि सीबीआई सही जांच नहीं कर सकेगी, इसलिए उन्होंने मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी के गठन को लेकर याचिका दायर की थी.
भट्ट की मांग थी कि कोर्ट इस सुनवाई में अमित शाह को भी शामिल करे. भट्ट ने अपनी याचिका में कहा है कि गुजरात सरकार के हलफनामे अमित शाह और दूसरे आरोपियों को दिए गए इसलिए उन पर अवमानना का मामला भी चलाया जाना चाहिए.