सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी राज्यों और केंद्र प्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है जिन्होंने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार कार्ड को जरूरी बनाया हुआ है. आपको बता दें कि इसके तहत राज्यों ने स्कूल-कॉलेज में रजिस्ट्रेशन, मैरिज रजिस्ट्रेशन, एलपीजी कनेक्शन और सरकारी राशन के लिए आधार कार्ड का होना अनिवार्य है.
जस्टिस बी एस चौहान और जस्टिस एस ए बोबडे की बेंच ने कहा कि आधार कार्ड के मसले पर न्यायिक व्यवस्था देते समय राज्य सरकारों के दृष्टिकोण पर विचार करना जरूरी है. बेंच ने राज्यों से जानना चाहा कि वे बताएं कि आधार कार्ड योजना का क्या नेचर है और क्या सरकारी सुविधाओं से आधार कार्ड को जोड़ा गया है? कोर्ट आधार कार्ड की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा था. इन याचिकाओं में कहा गया है कि इससे नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का हनन हो रहा है.
याचिकाकर्ताओं में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज के पुट्टास्वामी भी शामिल हैं. ये चाहते हैं कि योजना आयोग और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को 28 जनवरी, 2009 के शासकीय आदेश के जरिये आधार कार्ड जारी करने से रोका जाए.
एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दलील देते हुए कहा कि लोगों के बारे में व्यक्तिगत सूचनाएं इकट्ठा करके राइट टू प्राइवेसी का हनन हो रहा है क्योंकि इसके दुरुपयोग की आशंका रहती है. उन्होंने कहा कि नागरिकों से संबंधित व्यक्तिगत सूचनाएं निजी व्यक्ति इकट्ठा कर रहे हैं, जिससे नागरिकों की निजता को गंभीर खतरा हो सकता है.
इस पर कोर्ट ने कहा कि इसे सिर्फ निजता के पहलू से नहीं देखा जा सकता क्योंकि देश में निजता के अधिकार से कहीं अधिक जरूरी खाना और पानी है.
कोर्ट ने कहा कि इस देश का कठोर सच यह है कि ज्यादातर लोगों के लिए खाना और पानी राइट टू प्राइवेसी से ज्यादा महत्वपूर्ण है. क्या वो लोग जो आटे-चावल के लिए संघर्ष करते हैं वे प्राइवेसी की बात करेंगे? जहां तक बच्चों की सहमति न लिए जाने का सवाल है तो यहां घरवालों की मर्जी से बच्चों की शादी कराई जाती है.
कोर्ट ने कहा, 'आप किस सहमति की बात कर रहे हैं? क्या आपको पता है कि भारत में 69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही कर दी जाती है और 30 फीसदी बच्चों को उनकी मंजूरी के बिना बाल मजदूर बना दिया जाता है?'
याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने कहा कि केरल में बच्चों से जबरन उनकी पर्सनल जानकारी मांगी जा रही है क्योंकि वहां सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए आधार कार्ड जरूरी है. इस पर कोर्ट ने कहा, 'ऐसे बच्चों के लिए आधार कार्ड के लिए मंजूरी देने से ज्यादा रोटी, चावल और दाल ज्यादा जरूरी है. क्या आपको पता है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे सिर्फ मिड-डे मील के लिए स्कूल जाते हैं? शिक्षा की गुणवत्ता कैसी है? पढ़ाने से ज्यादा टीचर मिड-डे मील तैयार करने में व्यस्त रहते हैं. वकील साहब, आप अवास्तविक बात कर रहे हैं.'
गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस आदेश में बदलाव से इनकार कर दिया था जिसमें उसने कहा था कि आधार कार्ड सरकारी स्कीम के लिए अनिवार्य नहीं किया जा सकता.