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NRC पर केंद्र को फटकार SC ने कहा-बर्बाद करने पर तुला है गृह मंत्रालय, गृह सचिव को तलब करेंगे

जुलाई 2018 में जारी एनआरसी की मसौदा सूची में 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं होने के लेकर मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया था. विपक्षी दल ख़ासकर तृणमूल कांग्रेस ने मसौदे की आलोचना करते हुए कहा था कि यह मुसलमानों पर हमला है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो-पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो-पीटीआई)

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असम राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरएसी) की प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के रवैये से ऐसा लगता है कि सरकार इस प्रक्रिया को आगे ही नहीं बढ़ने देना चाहती. कोर्ट ने गृह मंत्रालय को यह फटकार लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एनआरसी की प्रक्रिया रोकने की याचिका पर लगाई है.

केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से एनआरसी की प्रक्रिया में लगे केंद्रीय सशस्त्र बल की 167 कंपनियों की लोकसभा चुनाव में भूमिका को देखते हुए इस कार्य को 2 हफ्ते तक रोकने की गुहार लगाई थी. प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया. जस्टिस रंजन गोगोई ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा ऐसा प्रतीत होता है कि गृह मंत्रालय एनआरसी के कार्य को बर्बाद करने पर तुला है. हम इस मामले में गृह सचिव को तलब करेंगे.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार शुरू से इस मामले में सहयोग नहीं कर रही है और हर बार एक नया बहाना दिया जाता है. अदालत ने दोहराया कि एनआरसी की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 31 जुलाई 2019 की तय समयसीमा आगे नहीं बढ़ाई जाएगी. कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को चुनाव डयूटी से राज्य के कुछ अधिकारियों को अलग रखने पर विचार करने के लिये कहा है कि ताकि यह सुनिश्चित हो कि एनआरसी की प्रक्रिया जारी रहे.

आपको बता दें कि असम एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके पास एनआरसी है, इसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था. लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान हुए असम समझौते के तहत यह तय किया गया कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे लोगों की सूची तैयार कराई जाएगी. इसके तहत मई 2015 में एनआरसी में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया की शुरूआत हुई. जिसके तहत असम के 68.27 लाख परिवारों से 6.5 करोड़ दस्तावेज प्राप्त हुए.

लेकिन असम के एनआरसी के दूसरे और अंतिम मसौदे के तहत जुलाई 2018 में जारी सूची पर तब विवाद पैदा हो गया जब इसमें शामिल होने के लिए आवेदित 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम ही शामिल किए गए. जबकि 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए. जिसके बाद सूची में शामिल नहीं किए गए लोगों के भविष्य को लेकर आशंका जाहिर की जाने लगी.

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इसके बाद एनआरसी की मसौदा सूची में शामिल नहीं किए गए लोगों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई. जिस पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने एनआरसी के मसौदे से बाहर रह गए करीब 40 लाख लोगों के दावे और आपत्तियां स्वीकार करने का काम शुरू करने का आदेश दिया. इस प्रक्रिया की शुरूआत 25 सितंबर, 2018 को शुरू हुई. अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि जिन लोगों के नाम एनआरसी के मसौदे में शामिल नहीं हैं, उनके खिलाफ किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा ही है.

हालांकि एनआरसी के समक्ष दावे और आपत्तियां स्वीकार करने की अवधि समाप्त हो चुकी है. लिहाजा इस समय इन दावों और आपत्तियों की समीक्षा का कार्य जारी है. अदालत ने पिछली सुनवाई में भी यह स्पष्ट किया था कि एनआरसी की प्रक्रिया पूरी करने की समयसीमा 31जुलाई, 2019 से आगे नहीं बढ़ाई जाएगी.

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