देशभर में दलित आंदोलन अपने उबाल पर है और सोमवार को SC/ST कानून में बदलाव के खिलाफ भारत बंद बुलाया गया था. इस दौरान हुई हिंसा में 8 लोगों की मौत भी हो गई और करोड़ों की संपत्ति तबाह हुई है. लेकिन इस कानून के तहत दर्ज हुए मामले और उनमें हुई सजा के आंकड़े सुप्रीम कोर्ट की ओर दिए फैसले को सही साबित करते दिख रहे हैं.
देश में पिछले 5 सालों के दौरान दलितों के खिलाफ अपराध के 1.92 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए जबकि औसतन 25 फीसदी मामलों में ही दोष सिद्ध हो पाया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 से 2016 में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के 32,353 मामले दर्ज हुए और औसतन 20 प्रतिशत मामलों में ही दोषसिद्धि हुई.
लोकसभा में भगीरथ प्रसाद के लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने आज यह जानकारी दी है. मंत्री ने बताया कि साल 2012, 2013, 2014, 2015 और 2016 में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 1,92,577 मामले दर्ज किए गए. इनमें 70 फीसदी से अधिक मामलों में आरोप पत्र दाखिल हुए और करीब 25 फीसदी मामलों में दोष सिद्ध हुआ.
गृह राज्य मंत्री के मुताबिक इसी अवधि में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध के 32,353 मामले दर्ज हुए. इनमें से करीब 75 फीसदी मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए और 20 फीसदी से अधिक मामलों में ही आरोपी दोषी ठहराए गए.
क्यों बुलाया भारत बंद
बता दें कि सोमवार को दलित संगठनों ने SC/ST एक्ट में हुए बदलावों के खिलाफ भारत बंद बुलाया था. इस बीच लगातार बढ़ते दबाव के बीच केंद्र सरकार ने सोमवार को ही पुनर्विचार याचिका डाली थी.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने को कहा था. जिसके बाद दलित संगठनों और नेताओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. इस मुद्दे को लेकर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, थावरचंद गहलोत सहित कई सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी.
याचिका पर 10 दिन बाद सुनवाई
केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका पर कोर्ट ने कहा कि SC/ST एक्ट के तहत जो व्यक्ति शिकायत कर रहा है, उसे तुरंत मुआवजा मिलना चाहिए. इस मामले की सुनवाई जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने की. कोर्ट ने इस मामले में सभी पार्टियों से अगले दो दिनों में विस्तृत जवाब देने को कहा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी.