सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कर न्यायाधिकरण अधिनियम को गुरुवार को असंवैधानिक घोषित कर दिया. इस कानून के तहत कर मामलों पर फैसला करने के लिए एक पंचाट का गठन किया गया था और इस मामले में हाई कोर्ट का अधिकार ले लिया गया था. यह निर्णय करने वाली चीफ जस्टिस आर एम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि 2005 में पारित यह अधिनियम असंवैधानिक है क्योंकि इसके तहत गठित राष्ट्रीय कर न्यायाधिकरण (एनटीटी) उच्चतर न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण करता है. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ ऊंची अदालतें ही महत्वपूर्ण कानूनों से जुड़े मुद्दों पर विचार कर सकती है न कि कोई पंचाट.
एनटीटी की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं न्यायालय के समक्ष थी जिन पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने यह निर्णय किया. याचिकाओं में दलील दी गई है कि इस अधिनियम से इस बात का गंभीर खतरा है कि इस तरह न्यायपालिका की जगह विभिन्न मंत्रालयों के विभागों की तरह काम करने वाले तमाम अर्धन्यायिक पंचाट खड़े कर दिए जाएंगे.
इस मामले में पहली याचिका 2006 में दायर की गयी थी. इसमें मद्रास बार एसोसिएशन ने एनटीटी के गठन को चुनौती दी थी. बाद में वकीलों की कई और एसोसिएशनों ने इस अधिनियम को चुनौती दी.
उस समय एनडीए सरकार ने यह कहते हुए एनटीटी के गठन के प्रस्ताव को उचित बताया था कि उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के अंबार के निस्तारण के लिए इस तरह के ट्रिब्यूनल की विचार ठीक है.