सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इच्छामृत्यु को लेकर अपना रुख साफ करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार 1 फरवरी तक यह बताए कि इच्छामृत्यु को लेकर वह क्या कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने पूछा कि अगर किसी इंसान का दिमाग काम करना बंद कर दे और वह सिर्फ वेंटिलेटर के सहारे ही जिंदा हो तो क्या उसे इच्छामृत्यु दी जा सकती है?
सरकार लॉ कमिशन की रिपोर्ट पर कर रही है विचार
सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर अपनी सहमति जताई और कहा कि सरकार अरुणा शानबाग केस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और लॉ कमिशन की 241वीं रिपोर्ट का अध्ययन कर रही है. इसमें कुछ स्थितयों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को इजाजत दी जाने की बात है.
मरीजों की सुरक्षा पर बिल लाने की तैयारी
पीएस पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मरीजों और डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए 'मेडिकल ट्रीटमेंट टू टर्मिनली इल पेशेंट (प्रोटेक्शन एंड मेडिकल प्रैक्टिशनर्स) 'बिल अभी लंबित है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच 'कॉमन कॉज' नाम के गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में इच्छामृत्यु को मौलिक अधिकारों में शामिल करने की मांग की गई है. संगठन ने साल 2005 में याचिका दायर कर कहा था कि जब डॉक्टर की यह राय हो कि लाइलाज बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति मरने की हालत में पहुंच गया है, तो उसे वेंटिलेटर पर रखने से इनकार कर दिया जाना चाहिए. वेंटिलेटर पर रखने से मरीज की वेदना ही बढ़ेगी.
नीदरलैंड और लग्जमबर्ग में मिल चुकी है मान्यता
इच्छामृत्यु दुनिया भर में विवादित मुद्दा रहा है. अधिकांश देश इसकी इजाजत नहीं देते. सक्रिय इच्छामृत्यु (एक्टिव यूथनेश्या) के तहत मरणासन्न व्यक्ति को इच्छामृत्यु देने के लिए किसी पदार्थ का सहारा लिया जाता है. इस प्रक्रिया को सिर्फ नीदरलैंड, लग्जमबर्ग और बेल्जियम में मंजूरी मिली हुई है.
अधिकांश देशों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मंजूरी
निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (पैसिव यूथनैश्या) का जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग के मामले में किया था. जिसके तहत एक मरणासन्न व्यक्ति को वेंटिलेटर से जानबूझकर हटाने की बात थी. पैसिव यूथनैश्या को अमेरिका, जर्मनी, जापान, स्विट्जरलैंड और अल्बानिया जैसे अधिकांश देशों में मंजूरी मिली हुई है. हालांकि भारत में इसको लेकर अभी तक कोई कानून नहीं है.