मोदी सरकार द्वारा 857 पोर्न वेबसाइट्स पर बैन लगाए जाने पर बरपे हंगामे के बाद पिछले महीने इसे वापस ले लिया गया था. जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट की वुमेन लॉयर्स एसोसियेशन ने पोर्न वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट की महिला वकीलों के संघ (एससीडब्ल्यूएलए) ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि केंद्र सरकार को इस मामले को नए सिरे से देखना चाहिए और 'आपत्तिजनक सामग्रियों' के प्रसार को रोकने के निर्देश देने चाहिए.
इंदौर के वकील कमलेश वासवानी की इस मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है और एससीडब्ल्यूएलए ने इसमें खुद को पार्टी बनाने की अपील की है. महिला वकीलों का कहना है कि स्थिति चिंताजनक है और स्कूली बच्चों (लड़के और लड़कियां दोनों) तक पॉर्न क्लिप स्कूल बसों और कैब के स्टाफों के जरिए पहुंच रही हैं.
एससीडब्ल्यूएलए की अपील है कि इस संबंध में सभी स्कूलों को निर्देश दिया जाए कि बसों में जैमर लगाए जाएं ताकि मोबाइलों के जरिए पॉर्न क्लिप की पहुंच पर रोक लग सके. देश की सर्वोच्च अदालत इस याचिका पर 13 अक्टूबर को सुनवाई करेगी.
याचिका में कहा गया है, 'पॉर्न सामग्री युवाओं के दिमाग को दूषित करती है और वे महिलाओं, बच्चों और बच्चियों के खिलाफ अपराध के लिए प्रेरित होते हैं. पॉर्न सामग्री की आसानी से उपलब्धता ज्यादातर अपराधों खासकर महिलाओं, बच्चियों और बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए जिम्मेदार हैं.'