केन्द्र सरकार ने मैट्रिक से पहले अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को छात्रवृत्ति देने की योजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर गुजरात सरकार की आलोचना की है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए केन्द्र सरकार ने इस संबंध में विस्तृत हलफनामा दायर किया है. केन्द्र सरकार ने छात्रवृत्ति योजना को जायज ठहराते हुए इसका विरोध करने पर गुजरात सरकार की आलोचना की है.
हलफनामे में सच्चर समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. हलफनामे के अनुसार, ‘सच्चर समिति ने पाया कि गुजरात के शहरी इलाकों में अधिकांश मुस्लिम रहते हैं और इन इलाकों में रहने वाले मुसलमानों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से अधिक गरीबी है.’ यह योजना मुस्लिम सहित पांच धार्मिक अल्पसंख्यकों के उन छात्रों के लिए है, जिनके माता-पिता की सालाना आमदनी 1 लाख रुपये से कम है.
यह योजना 2008 में शुरू की गई है. इस योजना के तहत छात्रवृत्ति की राशि का 75 फीसदी केन्द्र सरकार देती है, जबकि 25 फीसदी राज्य सरकार को वहन करना होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका पर सात मई को केन्द्र सरकार से जवाब तलब किया था. गुजरात सरकार ने इस योजना को संवैधानिक ठहराने वाले हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ यह याचिका दायर की है.
गुजरात सरकार का तर्क है कि अल्पसंख्यकों के लिए केन्द्र सरकार की छात्रवृत्ति योजना धर्म पर आधारित है और केन्द्र सरकार किसी राज्य को इस पर अमल के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. राज्य सरकार के अनुसार इसी तरह की एक योजना पहले से ही सभी धर्मों के छात्रों के लिए प्रदेश में लागू है.
गुजरात हाईकोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दो के मुकाबले तीन के मत से राज्य सरकार की इस दलील को अस्वीकार कर दिया था कि यह योजना भेदभाव करने वाली है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को योजना पर अमल का निर्देश दिया था.
बहुमत के निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा था कि इस योजना को किसी भी तरह के आरक्षण के समकक्ष नहीं रखा जा सकता और यह भेदभाव करने वाली नहीं है. इसके विपरीत, अल्पमत वाले फैसले में इस योजना को भेदभाव करने वाला करार दिया गया था.