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अलविदा 2018: विज्ञान की दुनिया के वो रिसर्च और आविष्कार जो रहे सुर्खियों में

साल 2018 भारत के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान, रक्षा प्रौद्योगिकी समेत कई क्षेत्रों में लगातार उपलब्धियां हासिल कर देश का गौरव बढ़ाया. वहीं, दूसरे देशों में भी लगातार ऐसे शोध या आविष्कार सामने आए हैं.

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भारत के गगनयान अभियान के लिए यही होगा ड्रेस
भारत के गगनयान अभियान के लिए यही होगा ड्रेस

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वर्ष 2018 को अलविदा कहने और 2019 के स्वागत का वक्त आ गया है. साल 2018 में दुनिया में कई बदलाव हुए. खासकर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में ये साल बदलावों का साल रहा. भारत के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान, रक्षा प्रौद्योगिकी समेत कई क्षेत्रों में लगातार उपलब्धियां हासिल कर देश का गौरव बढ़ाया तो वहीं दूसरे देशों में भी लगातार ऐसे शोध या आविष्कार सामने आए जिनका असर मानव जीवन और दुनिया पर लंबे समय तक रहेगा. ये रहीं विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में इस साल के बड़े शोध और आविष्कार और इस क्षेत्र की उपलब्धियां.

भारत का मिशन गगनयान

विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत की ओर से इस साल का सबसे बड़ा ऐलान रहा- मिशन गगनयान. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को स्‍वतंत्रता दिवस पर लाल किले से घोषणा की कि 2022 से पहले एक भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा. उनके इस मिशन की तैयारी पूरे जोरों से शुरू हो चुकी है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के अनुसार 2022 में लॉन्‍च होने वाले भारत के गगनयान मिशन के लिए 3 भारतीयों को चुना जाएगा, जो देश के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान प्रोग्राम का हिस्‍सा बनेंगे. इन्‍हें श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से लॉन्च किया जाएगा और सिर्फ 16 मिनट के भीतर वो अंतरिक्ष की सीमा में पहुंच जाएंगे. इसके बाद ये सभी धरती की निचली कक्षा में यानी 300 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई पर चक्‍कर लगाते हुए पांच से सात दिन गुजारेंगे. इसके बाद उन्‍हें क्रू मॉड्यूल के जरिए गुजरात तट के नजदीक अरब सागर में गिराया जाएगा. इस अभियान के साथ ही मानव को अंतरिक्ष में भेजने वाला विश्‍व का चौथा देश बन जाएगा भारत.

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चीन का अपना अलग चांद

साल 2018 में चीन ने बड़ा ऐलान किया. वह अपना अलग चांद लॉन्च करने की तैयारी में है. यह कृत्रिम चांद शहर में सड़कों पर रोशनी फैलाएगा. इसके बाद स्ट्रीट लैंप की जरूरत नहीं रहेगी. 2020 तक चीन में यह चांद चमकने लगेगा. चीन सड़कों को रोशन रखने में होने वाले बिजली के खर्च को घटाना चाहता है. चीन का दक्षिण पश्चिमी शिचुआन प्रांत "इल्यूमिनेशन सेटेलाइट" यानी प्रकाश उपग्रह विकसित करने में जुटा है. यह उपग्रह असली चांद जैसे ही चमकेगा लेकिन इसकी रोशनी प्रकृति के उस चांद की तुलना में आठ गुना ज्यादा होगी. इंसान का बनाया पहला चांद शिचुआन के शिचांद सेटेलाइट लॉन्चिंग सेंटर से छोड़ा जाएगा. अगर यह सफल हुआ तो 2022 में चीन 3 और ऐसे चांद अंतरिक्ष में भेजेगा.

भारत में दुनिया की पहली टेलीरोबोटिक कोरोनरी सर्जरी

दिसंबर माह में अहमदाबाद शहर के एक हृदयरोग विशेषज्ञ ने रोबोट नियंत्रित उपकरणों की मदद से 32 किलोमीटर दूर स्थान से एक रोगी की ‘टेलीरोबोटिक कोरोनरी' सर्जरी की और दावा किया कि यह 'विश्व की पहली' ‘टेलीरोबोटिक कोरोनरी' सर्जरी है. गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर परिसर में बैठे डॉ. तेजस पटेल ने महिला रोगी की सर्जरी की जो कि अहमदाबाद में एपेक्स हर्ट इंस्टीट्यूट के ऑपरेशन थिएटर में थीं. रोबोटिक प्रणाली आपरेशन थिएटर में रखी थी और वह उससे हाईस्पीड वायरलेस इंटरनेट से जुड़े हुए थे. डॉ. पटेल ने मंदिर में बैठकर बटन इधर-उधर घुमाए जिससे मरीज की धमनियां साफ हो गईं और उनमें स्टेंट डाल दिया गया. डॉ. पटेल ने दावा किया कि भारत ने चिकित्सा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. यह विश्व का पहला परक्युटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन है जो कि दूर स्थान पर बैठकर किया गया.

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पेट में जाकर इलाज करेगा इलेक्ट्रॉनिक कैप्सूल

मेडिकल साइंस के क्षेत्र में भी साल 2018 काफी आशाएं जगाने वाला रहा. अमेरिका के मैसाचूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने एक खास तरह का इलेक्ट्रॉनिक कैप्सूल बनाया. यह पेट में पहुंचकर दवा रिलीज करता है. इसे बाहर से एक ब्लूटूथ डिवाइस से कंट्रोल किया जाता है. दवा के एक माह के कोर्स के बाद यह कैप्सूल पेट में घुल जाता है और मलद्वार से बाहर निकल जाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक कैप्सूल की मदद से मरीजों को इंजेक्शन के दर्द से मुक्ति मिल सकेगी. यह ऐसे मरीजों के लिए बेहद उपयोगी है, जिनमें संक्रमण होने का खतरा ज्यादा होता है. ऐसे मरीज जो कीमोथैरेपी या इम्यूसप्रेसिव ड्रग ले रहे हैं उनके लिए डिवाइस खास फायदेमंद साबित होगी. जैसे ही संक्रमण का पता चलेगा कैप्सूल एंटीबायोटिक रिलीज करना शुरू कर देगा. मलेरिया और एचआईवी से जूझ रहे मरीजों को भी बिना लेटलतीफी के इस कैप्सूल की मदद से दवा दी जा सकेगी.

मंगल ग्रह पर भूमिगत झील होने का दावा

अमेरिकी जर्नल साइंस में प्रकाशित अध्ययन में NASA के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि मंगल पर हिमखण्ड के नीचे स्थित झील 20 किलोमीटर चौड़ी है. इससे वहां अधिक पानी और यहां तक कि जीवन की उपस्थिति की संभावना पैदा हो गई है. यह मंगल ग्रह पर पाया गया अब तक का सबसे बड़ा जल निकाय है. ऑस्ट्रेलिया के स्विनबर्न विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर एलन डफी ने इसे शानदार उपलब्धि करार देते हुए कहा कि इससे जीवन के अनुकूल परिस्थितियों की संभावनाएं खुलती हैं.

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इसरो का GSAT-7A, 100 गीगाबाइट होगी इंटरनेट स्पीड

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन-ISRO ने दिसंबर माह में संचार सेटेलाइट GSAT-7A लॉन्च किया. इस नए सेटेलाइट से 100 गीगाबाइट तक इंटरनेट की स्पीड हो जाएगी. देश में संचार सुविधाएं मजबूत करने के लिए इसरो वर्ष 2019 तक चार उच्च प्रवाह क्षमता वाले उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा. इसी माह इसरो ने देश के अब तक के सबसे भारी-भरकम उपग्रह ‘जीसैट-11’ को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. इसरो के अनुसार दोनों संचार सेटेलाइट देश में संचार सुविधाएं बेहतर करेंगे. इसका सबसे ज्यादा लाभ इंटरनेट यूजर्स को मिलेगा. इसरो के अनुसार GSAT-7A सेटेलाइट मिशन की अवधि आठ साल होगी.

सूरज मिशन पर NASA का अंतरिक्ष यान

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने पार्कर सोलर प्रोब यान को इसी साल लॉन्च किया. उम्मीद जताई जा रही है कि यह सूरज के सबसे नज़दीक पहुंचने वाला अंतरिक्ष यान होगा. इतिहास में अब तक कोई भी अंतरिक्ष यान सूरज के इतने क़रीब नहीं पहुंचा है. पार्कर सोलर प्रोब को फ़्लोरिडा के केप केनेवरल से प्रक्षेपित किया गया. इस अंतरिक्ष यान का नाम 91 वर्षीय खगोलशास्त्री यूजीन पार्कर के नाम पर रखा गया है जिन्होंने सबसे पहले सौर हवा का वर्णन किया था. इस मिशन का लक्ष्य सीधे हमारी बाहरी वायुमंडल या कोरोना का भौतिक अध्ययन करना है. 7 साल में यह सेटेलाइट सूरज के 24 चक्कर लगाएगा.

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मंगल पर नासा का इंसाइट लैंडर

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अंतरिक्ष यान इंसाइट लैंडर इसी साल मंगल ग्रह पर उतरा. मंगल के लिए भेजे गए इस नए रोबोट ने 7 मिनट के बेहद अहम वक़्त में यह लैंडिंग की. नासा के इंसाइट मिशन का लक्ष्य मंगल के ज़मीनी और आंतरिक भागों का अध्ययन करना है और पृथ्वी के अलावा यह इकलौता ऐसा ग्रह है जिसकी नासा इस तरह से जांच करने जा रहा है. इंसाइट मंगल ग्रह के बारे में ऐसी जानकारियां दे सकता है, जो अब तक नहीं मिली हैं. यह यान मंगल पर एक साइज़्मोमीटर रखेगा जो इसके अंदर की हलचलें रिकॉर्ड कर सकेगा. यह पता लगाएगा कि मंगल के अंदर कोई भूकंप जैसी हलचल होती भी है या नहीं. यह पहला यान है जो मंगल की खुदाई करके उसकी रहस्यमय जानकारियां जुटाएगा. इसके साथ ही एक जर्मन उपकरण भी मंगल की जमीन के 5 मीटर नीचे जाकर उसके तापमान का पता लगाएगा.

दुनिया से मच्छरों को खत्म करने के लिए अभियान

गूगल की पेरेंट कंपनी अल्‍फाबेट इंक ने दुनियाभर से मच्छरों का सफाया करने का एक नायाब तरीका खोज निकाला है. कैलिफोर्निया में वैज्ञानिकों ने दुनिया से मच्छरों के खात्मे को लेकर तैयारी शुरू की है. यह पहला मौका है, जब गूगल की पेरेंट कंपनी अल्‍फाबेट इंक दुनियाभर में मच्छरों से होने वाली बीमारी के खात्मे को लेकर काम कर रही है. इसको लेकर लाइफ साइंस से जुड़ी कई कंपनियां भी काम कर रही हैं. अल्‍फाबेट एक स्मार्ट कॉन्‍टेक्‍ट लेंस की मदद से और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एप्‍लीकेशन की मदद से मच्‍छरों के खात्मे की तैयारी में है. इसके लिए गूगल ने एक हेल्थ चीफ एक्जीक्यूटिव भी तैनात किया है, जो इस काम पर नजर बनाए हुए है. इस काम के लिए तकनीक तो उपलब्ध है, लेकिन कोशिश इस बात की हो रही है कि मॉस्कीटो कंट्रोल को लेकर आसान और सस्ती तकनीक बनाई जा सके, जो काफी हद तक फायदेमंद भी हो.

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आकाशगंगा में नए तारामंडल की खोज

वैज्ञानिकों ने इस साल आकाशगंगा में एक नए और विशाल तारामंडल की मौजूदगी का पता लगाया जो उन मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती देता है कि बड़े सितारों का अस्तित्व अंतत: कैसे खत्म हो जाता है. अमेरिका के न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में NASA के एक रिसर्चर बेंजमिन पोप ने कहा, “हमारी आकाशगंगा में खोजा गया यह अपने आप में एक अनोखा तारामंडल है.” वैज्ञानिकों ने गामा रे बर्स्ट प्रोजेनिटर सिस्टम का पता लगाया जो एक तरह का सुपरनोवा है. इस सुपरनोवा से प्लाज्मा की काफी शक्तिशाली और संकरी धारा निकलती रहती है. माना जाता है कि ऐसी क्रिया सिर्फ दूर स्थित आकाशगंगाओं में ही होती है.

अत्यधिक लचीली और रिचार्जेबल बैटरी का आविष्कार

वैज्ञानिकों ने रिचार्ज होने योग्य अत्यधिक लचीली लिथियम बैटरी का विकास इसी साल किया. यह बैटरी एक्वस इलेक्ट्रोलाइट्स पर आधारित है. इस तरह की बैटरी की जरूरत आने वाले समय में पहनी जा सकने वाली इलेक्ट्रोनिक डिवाइस के लिए होगी. दुनियाभर में लचीले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लोगों को काफी आकर्षित कर रही हैं क्योंकि इनमें लचीलापन होता है. दक्षिण कोरिया के उल्सान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने लचीले इलेक्ट्रॉड्स बनाने के लिए प्रवाहकीय पॉलीमर कंपोजिट का उपयोग करके इस समस्या को सुलझा लिया है. इसके लिए दुनिया भर से कई तरीके सुझाए गए थे लेकिन इनमें से कोई भी मांग के अनुसार अत्यधिक लचीलेपन वाला इलेक्ट्रॉड्स विकसित करने में सफल नहीं हो पाए थे.

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नई तकनीक: जेब में रखते ही फोन हो जाएगा चार्ज

दुनिया में करोड़ों स्मार्टफोन यूजर हैं. उनके लिए साल 2018 बड़ी खुशखबरी लेकर आया. नॉटिंघम ट्रसेंट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा सोलर पैनल बनाया है जिसे कपड़े की जेब में लगाया जाएगा. मोबाइल की बैट्री ख़त्म होने पर डिवाइस को जेब में रखने पर फोन चार्ज हो जाएगा. इस डिवाइस को चार्जिंग डॉक नाम दिया गया है. चार्जिंग के दौरान इंसान को किसी भी तरह का एहसास नहीं होगा. यह हर तरीके से बिल्कुल सुरक्षित होगा.

जैविक उत्पाद बिगाड़ सकते हैं जलवायु की सेहत

मौजूदा समय में की जा रही परंपरागत खेती की तुलना में जैविक ढंग से होने वाली खेती जलवायु के लिए अधिक खतरा पैदा कर सकती है क्योंकि इसके लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है. स्वीडन की चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के एक अध्ययन में यह बात सामने आई. इस अध्ययन में कहा गया है कि इसकी वजह यह है कि जैविक खेती से मौजूदा मात्रा में कृषि उत्पाद हासिल करने के लिए अधिक जमीन की जरूरत होती है और यह जंगलों को नष्ट करके ही हासिल की जा सकेगी जिससे मौजूदा उत्सर्जन पर असर पड़ सकता है. अनुसंधानकर्ताओं ने शोध में पाया कि उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से हो रही मौजूदा खेती की अपेक्षा बिना इनकी मदद से होने वाली जैविक खेती से जलवायु पर अधिक खराब असर हो सकता है.

हबल ने रिकॉर्ड गति से खत्म हो रहे ग्रह की खोज की

खगोलविदो ने हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी का उपयोग करके इसी साल नेप्च्यून ग्रह के लगभग आकार वाले एक ग्रह की खोज की. जो पहले से पहचाने गए समान आकार वाले एक अन्य बाह्य ग्रह (सौरमंडल से बाहर के ग्रह) की तुलना में 100 गुना तेजी से खत्म हो रहा है. ग्रह जिस गति से और जिस दूरी से अपने सितारे की परिक्रमा लगाते हैं उससे पता चल सकता है कि वे अपने सौर मंडल का दीर्घकालिक हिस्सा रहेंगे या खत्म हो जाएंगे. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन ग्रहों का अपना वायुमंडल खत्म हो जाता है और आखिरकार ये छोटे ग्रह बन जाते हैं.

DRDO का रुस्तम-2 ड्रोन

भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने फरवरी माह में घातक ड्रोन रुस्तम-2 ड्रोन का कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले में सफल परीक्षण किया. तीनों सेनाओं के लिए डीआरडीओ का बनाया यह मानवरहित विमान मध्यम ऊंचाई में लंबी दूरी तक उड़ान भर सकता है. यह एक बार में लगातार 24 घंटे उड़ान भरने में सक्षम है. हथियारों को ले जाने में सक्षम रुस्तम-2 निगरानी के काम में लाया जाएगा. इसे थल सेना, वायुसेना और नौसेना की जरूरतों को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. इसको अमेरिकी ड्रोन की तर्ज पर निगरानी और जासूसी के काम के लिए बनाया गया है. शक्तिशाली पॉवर इंजन के साथ यूजर कनफिगरेशन की यह पहली उड़ान थी.

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