उच्चतम न्यायालय ने कहा कि टू जी स्पेक्ट्रम मामले में सीबीआई जांच का दायरा बढ़ाने के साथ ही इसमें वर्ष 2001 की उन घटनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए जब राजग सरकार ने स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए विवादास्पद ‘पहले आओ पहले पाओ की नीति’ की शुरूआत की थी.
न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति ए. के. गांगुली की खंडपीठ ने कहा, ‘इस मामले में जो मुद्दे उठ रहे हैं, वे सिर्फ 1.76 लाख करोड़ रुपये तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका दायरा और अधिक है. हम इस जांच में पक्षपाती नहीं होना चाहते, बल्कि 2001 में जो हुआ, उस पर भी नजर डालने की जरूरत है. अब यह सीबीआई का काम है कि वह जांच करे और पता लगाए कि क्या हुआ था.’
न्यायाधीशों की यह टिप्पणी इसलिए भी अहम है क्योंकि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा लगातार इस बात पर कायम थे कि वह अपने पूर्ववर्तियों के नक्शेकदम पर चल रहे थे और उन्होंने 2001 की नीति का ही पालन किया था.
वर्ष 2001 में सरकार नीलामी की नीति पर नहीं चलती थी और स्पेक्ट्रम का आवंटन पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर होता था.
पीठ ने ऐसी दूरसंचार नीति की व्यवहारिकता पर प्रश्न खड़े किये जिसमें स्पेक्ट्रम का आवंटन वर्ष 2007-2008 में वर्ष 2001 की दर पर किया गया. पीठ ने कहा कि यह नीति बेतुकी है.
पीठ ने सरकार पर ताना मारते हुए कहा कि वह पेट्रोल की आपूर्ति वर्ष 2001 की दर पर करे. यायालय ने कहा, ‘इस वाणिज्यिक विश्व में सभी कंपनियां अपने व्यवसायिक हित का ध्यान रखती हैं. आप हमें पेट्रोल वर्ष 2001 की कीमत पर क्यों नहीं देते. यदि आप इसे नीति भी करार देते हैं तो यह एक बेतुकी नीति है.’
{mospagebreak} उच्चतम न्यायालय ने डुअल तकनीक, सीडीएमए और जीएसएम के स्थानांतरण संबंधी नीति पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि जहां डुअल तकनीक संबंधी अधिसूचना 19 अक्तूबर, 2009 को जारी की गई, वहीं एक सेवा प्रदाता को इसके एक दिन पहले ही इसकी अनुमति दे दी गई.
पीठ ने कहा, ‘टी आर अध्यार्जुन (ए राजा के वकील) ने जिस तरफ ध्यान दिलाया, वह उससे कहीं ज्यादा है, जो आंखों से दिख रहा है.’ पीठ ने यह भी कहा कि यहां तक कि कैग ने भी डुअल तकनीक के मुद्दे की ओर ध्यान नहीं दिया. पीठ के मुताबिक, ‘इस मुद्दे की जांच नहीं की गई.’ पीठ ने कहा, ‘आप इस मुद्दे की 2001 से जांच क्यों नहीं करते.’ पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन का शुल्क उसी समय निर्धारित किया गया था.
वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने सीबीआई के लिए पेश होते हुए पीठ को स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच की प्रगति के बारे में बताया कि जांच एजेंसी ने राजा के राजधानी दिल्ली, चेन्नई और बेंगलूर स्थित आवासों पर छापे मारे हैं.
उन्होंने कहा कि एजेंसी इस जांच के लिए कड़ी मेहनत कर रही है और न्यायालय को भी इसके प्रयास करने चाहिए कि जांच के बारे में जानकारी सार्वजनिक न हो. इस पर पीठ ने कहा, ‘आप जांच को गोपनीय रखना चाहते हैं लेकिन सभी टेलीविजन चैनल आपके द्वारा मारे गए छापे को चैनल पर दिखा रहे हैं.’
{mospagebreak} वहीं जांच की उच्चतम न्यायालय द्वारा निगरानी की मांग करने वाली गैर सरकारी संस्था सेंटर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, ‘सीबीआई द्वारा मारे गए इन छापों का कोई मतलब नहीं है.’
उन्होंने कहा कि जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी एवं अन्य की शिकायत के बावजूद एजेंसी एक वर्ष तक हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही. सीबीआई ने शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाय लगभग एक वर्ष बाद 21 अक्तूबर 2009 को अज्ञात लोगों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की.
जिन तथ्यों के लिए सीबीआई ने छापे मारे हैं वह उसके बारे में उसे प्राथमिकी दर्ज किये जाने के समय ही जानकारी थी.
वेणुगोपाल ने कहा कि इस घोटाले में जांच अगले वर्ष फरवरी तक पूरी हो जाएगी लेकिन यह देश तक ही सीमित होगी क्योंकि देश के बाहर जांच के लिए और समय की जरूरत होगी.
प्रवर्तन निदेशालय ने भी इस मामले में अपनी जांच की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत में पेश की. अदालत में अपनी रिपोर्ट जमा करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल हरेन रावल ने पीठ को बताया कि इसमें धन शोधन निरोधक अधिनियम और विदेशी मुद्रा विनिमय प्रबंधन अधिनियम के तहत दर्ज मामले की नौ मार्च, 2010 से की गई जांच का विवरण है.
खंडपीठ ने सीबीआई के इस सुझाव को नकार दिया कि अदालत इस मामले से जुड़े आदेश सीलबंद लिफाफे में दे दे. पीठ ने कहा, ‘सीलबंद लिफाफे में दिए गए आदेश, न्याय के लिए हितकर नहीं होंगे.’
{mospagebreak} सीबीआई के सुझाव को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘अदालत की कार्यवाही, मामले की सुनवाई और अदालत का आदेश किसी आलोचना से प्रभावित नहीं होते. भले ही वह निचली अदालत हो या उच्चतम न्यायालय, उसे संविधान और जनहित को ध्यान में रखते हुए अपनी बुद्धिमत्ता से काम करना होता है.’
पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई खुली अदालत में हो रही है और खबरों में कुछ चीजों को तोड़मोड़ कर पेश किये जाने के बाद भी जो कुछ कहा जा रहा है, उस सबसे अदालत की कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
अदालत ने कहा, ‘सीलबंद लिफाफे में आदेश देना, न्याय के लिए हितकर नहीं होगा. इसे न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यह अटकलों को जन्म देगा.’ पीठ ने कहा, ‘हम अपने नियमों से चलने वाले हैं.’
इस बिंदु पर सीबीआई की ओर से अदालत में मौजूद के के वेणुगोपाल ने कहा कि यह अदालत को फैसला करना है कि उसे अपना आदेश सीलबंद लिफाफे में देना है या खुली अदालत में.