एग्जाम में नंबर अच्छे नहीं आए तो क्या हुआ, तुम्हारा टैलेंट तुमसे कोई नहीं छीन सकता...
नंबर, ये तो बस कागज के टुकड़ों पर छपते हैं...
दुनिया में हर महान शख्स ने एग्जाम में टॉप नहीं किया जो तुम्हारा टॉप न करना पाप हो गया...
यहां मैं इन तीनों बातों से सहमत हूं क्योंकि एग्जाम में नंबर अच्छे लाना ही जिंदगी का आखिरी मुकाम नहीं होता. लेकिन इन बातों के बीच एक सच भी है जिसे हम भूल नहीं सकते, वो है एग्जाम के बेहतर नंबर.
माना किसी स्टूडेंट का टैलेंट बोर्ड एग्जाम में मिले नंबर तय नहीं कर सकते. लेकिन उसी स्टूडेंट को अपने टैलेंट के लिए प्लेटफॉर्म चाहिए जो मिलता है अच्छे रिजल्ट से. अब आप कहेंगे कि इंसान अपना मुकाम अपने दम पर बनाता है, फिर चाहे नंबर कैसे भी हों. हां आपकी इस बात से भी मुझे गुरेज नहीं है लेकिन सच्चाई उन स्टूडेंट्स से पूछिए जनाब जो अच्छे कॉलेज में एडमिशन पाने के लिए नंबरों के गणित लगाते रहते हैं.
बहुत आसान है ये कहना कि पैरेंट्स का दबाव बच्चों को परेशान कर देता है. मगर उस सिस्टम पर सवाल क्यों नहीं उठते जो 100 फीसदी कटऑफ की बात करता है. इसीलिए तो... शर्मा जी को गुप्ता जी के बेटे के अच्छे नंबर आने पर दर्द होता है और शर्मा जी का बेटा फिर सिर झुकाए घूमता है. फिर भले ही यह फासला एक या दो पर्सेंट का क्यों न हो!
कभी पूछिए उन लोगों से जिनसे दुनिया की जानी-मानी कंपनियां कैंपस सेलेक्शन के दौरान 10, 12वीं के नंबर को लेकर सवाल करती हैं. इसकी वजह है क्योंकि कंपनियां हमारे टैलेंट को ओवर ऑल परफॉमेंस से तय करती हैं. आप भले ही कितने टैलेंटेड हों, आपके नंबर आपका पीछा नहीं छोड़ते.
चलिए मान लेते हैं नंबर लाना जरूरी नहीं होता तो जरा एक बात बताइए... बिना पढ़े-लिखे लोग जो आपके जैसे एजुकेटेड नहीं हैं मगर बेहतरीन काम करते हैं, उनकी इज्जत क्यों नहीं होती ? बस इसलिए कि वो स्कूल नहीं गए, स्कूल गए भी तो पढ़ने में दिल नहीं लगा और आज कोई छोटा-मोटा काम कर रहे हैं. एक रिक्शे वाले को ले लीजिए, जब सूरज अपने रुआब में होता है और आसमान से शोले बरसते हैं, तब रिक्शेवाले भईया आपको बेजान सी सड़कों पर रिक्शा खींचते हुए रास्ता पार कराते हैं. उस इंसान को क्यों नहीं दी जाती वो कीमत, जो हमें एसी में बैठकर कंप्यूटर के सामने बैठने की मिलती है.
माना हर काम अलग होता है, हर काम की इज्जत होती है. लेकिन आप सच को नहीं बदल सकते. हमसे ज्यादा इस सच को एक रिक्शेवाला जानता है तभी तो चार पैसे कमाना वाला भी अपने बच्चे से कहता है खूब पढ़ो, तुम्हें कलेक्टर बनना है. हाल ही में आए UPSC के नतीजे देख लीजिए, क्या खुशी थी इस पिता के चेहरे पर जो खुद लखनऊ यूनिवर्सिटी में चपरासी था और उसका बेटा UPSC परीक्षा पास करके अफसर बनने जा रहा है.
सारी बातें पीछे रख दीजिए, तब भी एक बात है, एक सवाल है, एक सच है कि हम उस समाज में जी रहे हैं जहां आज भी डॉक्टर, इंजीनियर और टीचर्स को दूसरे प्रोफेशन्स से ज्यादा बड़ा और इज्जतदार माना जाता है. हां अगर आप म्यूजिशियन, सिंगर और जर्नलिस्ट बनना चाहते हैं तो आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप एआर रहमान, अरिजीत सिंह और बरखा दत्त हो जाइए. वरना आपको इंसान तो समझा जाएगा मगर ताने मारने वाला समाज भी ठीक पीछे खड़ा होगा.
आखिर में यही कहूंगी कि नंबरों की रेस भले ही बेमानी लगती हो मगर इसमें शामिल होना और जीतना जरूरी है एक बेहतर भविष्य के लिए. अच्छा होगा नंबरों के असली वजूद का सच अपनाइए और सिर्फ टैलेंट काफी है वाले झूठ से खुद को बचाकर रखें. और न ही इसकी आड़ में मेहनत करने से बचें.