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जस्टिस जोसेफ की वरिष्ठता को लेकर अपने रुख पर कायम रहेगी सरकार, ये है वजह

जस्टिस के एम जोसेफ की वरिष्ठता को लेकर खड़े विवाद पर सरकारी सूत्रों का कहना है वरिष्ठता का आधार तीनों जजों के हाईकोर्ट में शपथ लेने की तारीख के हिसाब से तय की गई.

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जस्टिस के.एम. जोसेफ (फाइल फोटो)
जस्टिस के.एम. जोसेफ (फाइल फोटो)

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सुप्रीम कोर्ट में तीन जज नियुक्त होने के मामले में उतराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ के वरिष्ठता के क्रम में तीसरे नंबर पर होने का मामला फिर चर्चा में है. इस बाबत केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक वरीयता इस आधार पर तय की गई है कि तीनों में पहले हाई कोर्ट का जज कौन बना न कि इस आधार पर की पहले तीनों जजों में से हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस कौन बना. 

सूत्रों के मुताबिक सरकार का कहना है कि जस्टिस इंदिरा बनर्जी 5 फ़रवरी 2002, जस्टिस विनीत सरन 14 फ़रवरी 2002 और जस्टिस के एम जोसेफ 14 अक्टूबर 2014 को हाई कोर्ट के जज बने.  दरअसल सुप्रीम कोर्ट में तीन जज नियुक्त होने के मामले में उतराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ के वरिष्ठता के क्रम में तीसरे नंबर पर किये जाने से नाराज सुप्रीम कोर्ट के जज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से मिले.

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इन जजों का कहना है कि जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने के लिए कॉलेजियम ने सबसे पहले जनवरी में सिफारिश भेजी थी लेकिन केंद्र ने अप्रैल में इसे वापस भेज दिया.

कॉलेजियम ने जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश दोबारा भेजी तो अब जस्टिस जोसेफ को जस्टिस इंदिरा बैनर्जी और जस्टिस विनीत सरन के बाद तीसरे नंबर पर रखा गया है जिससे वो इन दोनों के भी जूनियर हो गए हैं। जबकि वो इनसे पहले हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे.

नियम के मुताबिक़ एक ही दिन अगर कई जज शपथ लेते हैं तो उनके शपथ लेने का क्रम ही सीनियरिटी का आधार बनता है.

जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जस्ती चलमेश्वर के बीच तनातनी की असली वजह ही यही थी. जस्टिस चलमेश्वर ने जस्टिस दीपक मिश्रा से सिर्फ तीन मिनट पहले शपथ ली थी और हमेशा के लिए जूनियर हो गए. 

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