जबरन धन वसूली और सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामलों में सीबीआई द्वारा आज गिरफ्तार किए गए गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह की भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के गांधीनगर चुनाव क्षेत्र का वर्षों से ध्यान रखने और 2001 में नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी मजबूत राजनीतिक छवि बनाने में बड़ी भूमिका रही है.
जमीनी स्तर से उभर कर राजनीति की उचाइंयों तक पंहुचे अमित में लोगों और घटनाओं को अपने लाभ के लिए मोड़ने की गजब की क्षमता बताई जाती है.
भाजपा के सूत्रों ने बताया, ‘‘शाह में जनता का मन पढ़ने की गजब की क्षमता है जो मोदी के लिए अत्यधिक फायदेमंद रही. इस क्षमता में मोदी के दरबार में शाह की कोई सानी नहीं है.’’ उन्होंने बताया, जनता की नब्ज पहचानने के लिए वह समय समय पर अपने लोग जनता के बीच भेजते हैं जो जमीनी हकीकत की उन्हें जानकारी देते हैं और उसके अनुसार भावी रणनीति तैयार हुआ करती थी. पार्टी के लोग बताते हैं कि शाह का आकलन शायद ही कभी गलत साबित हुआ हो.
राजनीतिक में आने से पहले शाह तेज तर्रार शेयर दलाल और कई सहकारी बैंकों के संरक्षक थे. भाजपा का नेता बनने से पहले वह विश्व हिन्दू परिषद के नेता थे.
शाह पर आरोप है कि कथित जबरन धन उगाही करने और हत्याओं में शामिल सोहराबुददीन की फर्जी मुठभेड़ में हत्या में उनकी भी भूमिका रही है. यह आरोप भी है कि सोहराबुद्दीन की फर्जी मुठभेड़ की गवाह रही उसकी पत्नी कौसरबी तथा प्रजापति की हत्या भी उनके इशारे पर हुई थी.
शाह के खिलाफ तैयार आरोपपत्र में हत्या और जबरन धन उगाही के लगभग 20 मामले हैं. कुछ आरोप उन व्यापारियों की स्वीकारोक्तियों पर आधारित हैं जिनमें कहा गया है कि सोहराबुद्दीन की हत्या के बाद शाह के लोगों की ओर से धन की मांग होती थी और धन नहीं देने वालों को सोहराबुद्दीन हत्या मामले में फंसाने की धमकी दी जाती थी.
शाह पर यह आरोप भी है कि सोहराबुद्दीन मामले की जांच से जुड़े गुजरात कैडर के कई पुलिस अधिकारियों का उन्होंने इसलिए तबादला कर दिया क्योंकि वे ‘लाइन से अलग’ जा रहे थे.