जयराम रमेश का कहना है कि प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के फैसले के पीछे कोई राजनीति नहीं है. मुद्दे की संजीदगी को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने पूरे मामले की जांच कराने का फैसला लिया. जांच का कार्यभार तीन जजों को दिया गया है. महाऱाष्ट्र के मुख्य मंत्री ने यह फैसला समाजसेवी अन्ना हज़ारे और मेधा पाटकर के दबाव के बाद लिया है.
आदर्श मामले में कांग्रेस के आला नेताओं का नाम आया था और इस बार एनसीपी के आला नेता घेरे में है. एनसीपी के अध्यक्ष और केंद्र में कृषि मंत्री शरद पवार यह स्वीकार कर चुके हैं कि सपनों के इस शहर को बनाने का सपना सबसे पहले उन्होंने देखा था. एक अखबार को दिए गए इंटरव्यू में पवार ने कहा था कि जब वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने हेलिकॉप्टर नीचे लाकर इस शहर की साइट को सिलेक्ट किया था.
सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं. लवासा के निर्माण के लिए 11–02–2000 में लेक सिटी कॉर्पोरेशन नाम की एक कंपनी बनाई गई. इस कंपनी में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सूले और दामाद सदानंद सूले 30-11-2002 से 2004 के अंत तक डायरेक्टर रहे.
2004 के शुरू में इसी कंपनी ने लवासा की प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाई और महाराष्ट्र सरकार से शहर के विकास की अनुमति मांगी. 2004 के अंत में सूले दंपत्ति ने इस कंपनी के डायरेक्टर पद से इस्तीफा दिया. शरद पवार का परिवार इस प्रोजेक्ट से अब कोई संबंध नहीं होने का दावा कर रहा है.
लवासा कॉरपोरेशन के आजतक को लिखित जवाब में बताया कि सुप्रीया सूले और सदानंद सूले बोर्ड पर ज़रूर थे लेकिन 2004 में लवासा क़ॉरपोरेशन ने उनकी हिस्सेदारी कानून खरीद ली है. हांलांकि कितने में यह हिस्सेदारी खरीदी गई या फिर बेची गई इसपर कंपनी ने टिपणी करने से इनकार कर दिया है.
आजतक के हाथ लगे दस्तावेजों के मुताबिक सदानंद सुले और सुप्रिया सुले की इस प्रोजेक्ट में करीब 21 फीसदी हिस्सेदारी थी. इस प्रोजेक्ट पर इतने सारे सवाल उठने के बाद यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र सरकार इस प्रोजेक्ट पर क्या रूख अपनाती है. ये देखना भी काफी दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा उठाए गए सवालों का क्या जवाब देती है.
इस मामले को लेकर महाराष्ट्र की विधान सभा में हंगामा होना तय है. महाराष्ट्र की विधान सभा का शीतकालीन सत्र हंगामेदार होने के आसार हैं.