धीरे-धीरे यह साफ होता जा रहा है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस के अगले सर्वेसर्वा होंगे. पार्टी भले ही इस फैसले से खुश हो, पर यूपीए-1 और 2 में उनकी साथी रही एनसीपी के मुखिया शरद पवार नाराज हैं.
दरअसल, दागी नेताओं पर अध्यादेश पर राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर विरोध जताकर खुद की भ्रष्टाचार विरोधी छवी बनाई. दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण राजनीतिक हथकंडों के जरिए राज्य में एनसीपी को दरकिनरार करने में जुटे हैं. इस परिस्थिति को लेकर एनसीपी नेता असहज हैं, खासकर शरद पवार.
एनसीपी सूत्रों की मानें तो शरद पवार ने अपनी इस नाराजगी का जिक्र एनसीपी मंत्री और पार्टी की कोर कमिटी के सदस्यों की बैठक के दौरान किया. दरअसल, दिल्ली की सियासत की जिम्मेदारी शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल पर रही है. खासकर, प्रफुल्ल पटेल और सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के अच्छे रिश्ते ने महाराष्ट्र और केंद्र में सुचारू गठबंधन का संचालन सुनिश्चित किया, लेकिन अब महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे जैसे अहम मुद्दे पर अहमद पटेल पीछे हट गए हैं.
एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अहमद पटेल ने ही पिछले लोकसभा चुनाव में 26-22 के फॉर्मूले पर आखिरी मुहर लगाई थी, पर अब जब स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व सीट बंटवारे पर नए फॉर्मूले की मांग कर रहा है तो अहमद पटेल पीछे हट गए हैं, और एनसीपी नेतृत्व को जानकारी दी है कि सीट बंटवारे को लेकर अब कांग्रेस के नए नेतृत्व से बात करनी होगी.
सूत्रों ने बताया कि पवार ने यह कहते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त की, 'कांग्रेस में किससे बात करनी है, इसे लेकर भ्रम की स्थिति है.'
शरद परवार ने पार्टी नेताओं को चुनावों की तैयारी करने को कहा है. पार्टी आगामी चुनाव में कांग्रेस के साथ मैदान में उतरना चाहती है पर कांग्रेस में चले रहे नेतृत्व परिवर्तन को लेकर एनसीपी पशोपेश में है.
इसके अलावा दो हफ्ते पहले महाराष्ट्र दौरे के दौरान राहुल गांधी द्वारा दिए गए बयान ने भी आग में घी डालने का काम किया, जिसमें कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा था कि अगर हम अपने दम पर बहुमत लाते हैं तो हमें एनसीपी की जरूरत नहीं.
अगर एनसीपी से गठबंधन टूटता है तो कांग्रेस के हाथ से महाराष्ट्र निकल सकता है. दोनों पार्टियों का नेतृत्व यह जानता है कि अगर उन्हें महाराष्ट्र में सत्ता चाहिए तो उनके पास साथ बने रहने के अलावा कोई उपाय नहीं है. लेकिन एनसीपी को ऐसा लगता है कि कांग्रेस उन्हें अहमियत नहीं दे रही.
पिछले दो सालों में सूबे के मुखिया पृथ्वीराज चव्हाण ने एनसीपी को असहज स्थिति में डालने का कोई मौका नहीं छोड़ा. चाहे वह राज्य सहकारी बैंक के खिलाफ कार्रवाई हो जिसे अजित पवार चलाते थे, या फिर राज्य की खराब सिंचाई स्थिति को लेकर बयान देना.
लोग मानते हैं कि पृथ्वीराज चव्हाण ने जानबूझकर एनसीपी द्वारा संभाले जा रहे मंत्रालयों और उनके नेताओं पर निशाना साधने की रणनीति अपनाई. वहीं शरद पवार खुद सूबे के मुखिया की कार्यशैली पर अपनी नाराजगी कड़े शब्दों में जाहिर कर चुके हैं. अब जब चुनाव नजदीक हैं और कांग्रेस के ज्यादातर साथी साथ छोड़कर जा चुके हैं, पार्टी नए नेतृत्व को लेकर एनसीपी में असहजता बढ़ती जा रही है. ऐसे में अगर कांग्रेस और एनसीपी को महाराष्ट्र में नरेंद्र मोदी की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करना है तो इस मुद्दे का हल निकालना होगा.