पवार साहब को आजकल सोनिया गांधी की कुर्बानी याद आ रही है. वही कुर्बानी, जिस मुद्दे पर पवार कभी कांग्रेस से अलग हुए थे. लेकिन अब एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को लगता है कि प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर सोनिया ने ऐतिहासिक त्याग किया है और उनका विरोध करने का फैसला शायद सही नहीं था.
कहते हैं राजनीति में कोई भी बात पुरानी नहीं होती. कम से कम सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री पद को ठुकराना तो भारतीय राजनीति की वो बात है, जिसे कांग्रेस कभी पुरानी होने भी नहीं देना चाहेगी.
लेकिन अब तो वो लोग ही सोनिया की इस सियासी कुर्बानी को याद करने से गुरेज नहीं करते जो कभी सोनिया के मुद्दे पर ही कांग्रेस से अलग हुए थे. शरद पवार को तो आप जानते ही हैं. और ये भी जानते ही होंगे कि उन्होंने एनसीपी क्यों बनाई थी. लेकिन आज जब वो सियासत के पुराने पन्नों को पलटते हैं, तो सोनिया के लिए शहद भरे बोल जुबान से खुद ही टपक पड़ते हैं.
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा, 'वो विवाद हमने ही खड़ा किया था. पर एक बात मुझे माननी होगी कि प्रधानमंत्री पद का मुद्दा हमने उठाया था. लेकिन हमें बाद में समझ में आया कि इतना बड़ा प्रधानमंत्री का पद उन्हें मिल रहा था लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया, ये सोनिया जी का बड़प्पन है.'
सत्ता के समीकरण होते ही ऐसे हैं. जब विरोध में रहें तो जमकर विरोध करें और जब हाथ मिल जाए तो दोस्ती तो निभानी ही पड़ेगी. घड़ी की सुइयों के साथ पवार के बदलते तेवर और बोल तो कम से कम इसी ओर इशारा करते हैं.