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आज के NDA के पास कोई एजेंडा नहीं, सभी साथी पेइंग गेस्ट जैसे: शरद यादव

शरद यादव ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव बड़ी बहस के लिए भी होता है. ऐसी बहस देश की जनता को सुनाई जाती है. अविश्वास प्रस्ताव एकतरह से सरकार के सारे कामकाज को लेकर उसको बेनकाब करने के लिए होता है.

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शरद यादव (फाइल फोटो)
शरद यादव (फाइल फोटो)

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संसद में सरकार के खिलाफ पेश किए जाने वाले पहले अविश्वास प्रस्ताव को लेकर शरद यादव ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि आज एनडीए के पास कोई एजेंडा नहीं है और एनडीए में शामिल सारे घटक दल पेइंग गेस्ट जैसे हैं.

वर्तमान और पिछली एनडीए सरकार की कार्यशैली पर तुलना करते हुए शरद यादव ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के जमाने में ऐसा नहीं था, तब देश के लिए एक राष्ट्रीय एजेंडा हुआ करता था.

लोकसभा में प्रस्तावित अविश्वास प्रस्ताव के बारे में शरद यादव ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव हारने-जीतने के लिए होता है, साथ ही बड़ी बहस के लिए भी होता है. ऐसी बहस देश की जनता को सुनाई जाती है. यह एक तरह से सरकार के सारे कामकाज को लेकर उसको बेनकाब करने के लिए होता है.

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एनडीए में सहयोगी भी बेचैन

उन्होंने कहा कि 'मोदी बनाम सब' की तस्वीर तो बन चुकी है, ऐसा कौन है जो गठबंधन में उनके साथ है. हर कोई अपनी नाराजगी अब लगातार जाहिर कर रहा है. शिवसेना पहले से ही नाराज चल रही है, वोटिंग से बाहर रहना भी अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन ही है. आज जो भी दल बीजेपी के सहयोगी हैं, उसमें आप किसी का भी नाम ले लीजिए वह सब अब बेचैन हैं.

उन्होंने कहा, 'जनता तो बैचेन है ही. नौजवान हों, किसान हों, दलित हों, आदिवासी हों या फिर व्यापारी हों या उद्योगपति हर कोई बेचैन है. साझा विरासत ने इस देश में एक बड़ा वातावरण बना दिया, जिसके बाद एक तरह से विपक्षी दलों की गोलबंदी हो गई. संसद के बाहर इस गोलबंदी से हमने 'संविधान बचाओ कार्यक्रम' भी किया. नासिक से चलकर किसान भी गए.

संविधान बचाना जरूरी

उन्होंने कहा, 'मौजूदा हालात को देखते हुए सारे विपक्षी दलों का यह फर्ज बनता है कि वे एक होकर देश के संविधान को बचाने की मुहिम में जुट जाएं. अविश्वास प्रस्ताव के जरिए होने वाली बहस राज्यों के चुनावों पर असर डालते हैं. अविश्वास प्रस्ताव कोई भी रखे, लेकिन हर पार्टी उसे अपने-अपने तरीके से मुद्दा बनाती है.'

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शरद ने कहा कि कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं. आज सारे विपक्षी दलों की कोशिश होगी कि कर्नाटक में हम चुनाव जीतें, तो इस बहस को हम कर्नाटक में भी ले जाएंगे और इस साल जिन राज्यों में भी चुनाव होने वाले हैं वहां पर भी लोगों के बीच सच्चाई ले जाएंगे. जनता के बीच बहस ले जाएंगे और वह तय करें कि कौन सच है.

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