दिल्ली हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की राज्यसभा सदस्य के रूप में अयोग्यता बरकरार रखे जाने की स्थिति में उन्हें याचिका लंबित रहने के दौरान प्राप्त वेतन वापस करना पड़ सकता है.
कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराए जाने को चुनौती देने वाली शरद की याचिका के लंबित रहने के दौरान उनके द्वारा लिए गए वेतन को उन्हें उनकी याचिका खारिज होने की स्थिति में वापस करना पड़ सकता है.
न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने राज्यसभा में जेडीयू के नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. याचिकाकर्ता ने अदालत के उस आदेश में संशोधन का आग्रह किया था जिसमें यादव को एक सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन, भत्तों और बंगले के उपयोग की अनुमति दी गई थी.
कोर्ट ने हालांकि कोई आदेश पारित नहीं किया और मामले को सुनवाई के लिए 21 मार्च को सूचीबद्ध किया, जिसमें यह निर्णय लिया जाएगा कि क्या यादव की याचिका की सुनवाई एकल पीठ करेंगी या कोई खंडपीठ करेंगी.
सिंह ने अपनी याचिका में आग्रह किया है कि यादव की याचिका की सुनवाई उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा की जाए. इस बीच राज्यसभा सभापति की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने कहा कि सुनवाई की अगली तिथि से पहले एक हलफनामा के जरिये उनके मुवक्किलों का रूख रखा जाएगा.
वकील गोपाल सिंह और शिवम सिंह के माध्यम से दायर अपनी याचिका में रामचंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि चूंकि सांसदों को भत्तों का भुगतान सदन की कार्यवाही में उनकी भागीदारी के आधार पर होता है, इसलिए यादव इस तरह के लाभ के हकदार नहीं थे क्योंकि उन्हें संसद या उसकी समितियों में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई है.
हाईकोर्ट ने पिछले साल 15 दिसंबर को यादव को अयोग्य ठहराए जाने पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था. हालांकि कोर्ट ने कहा था कि शरद यादव को वेतन, भत्ते और बंगले की सुविधा मिलती रहेगी. यादव ने वकील निजाम पाशा के जरिए दायर अपनी याचिका में चार दिसंबर, 2017 को उन्हें अयोग्य ठहराए जाने के आदेश को चुनौती दी थी.