सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत अदालतों को लेकर बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने सोमवार को कहा कि शरीयत अदालतों द्वारा जारी किए गए फतवों को मानना जरूरी नहीं है. ऐसी अदालतें दो लोगों के मामले में ना पड़ें.
फैसला सुनाते वक्त शीर्ष अदालत ने ये भी कहा है कि शरीयत अदालतों को कानूनी मान्यता नहीं है. शरीयत अदालतों की वैधता पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि तीसरे पक्ष की अपील पर फतवा न हो.
हालांकि कोर्ट ने कहा कि शरीयत कोर्ट को राय देने का अधिकार है और वह असंवैधानिक नहीं है.
कोर्ट ने निर्दोष लोगों के खिलाफ शरीयत अदालतों द्वारा फैसला दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कोई भी धर्म निर्दोष लोगों प्रताड़ित करने की अनुमति नहीं देता है. जज ने इमराना केस का हवाला देते हुए कहा कि फतवा किसी शख्स के व्यक्तिगत अधिकारों को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है.
सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला दिल्ली के वकील विश्व लोचन मदन की याचिका पर दिया है. विश्व लोचन ने अपनी याचिका में दारुल कजा और दारुल इफ्ता जैसे संस्थानों द्वारा समानांतर अदालतें चलाए जाने को चुनौती दी थी. उन्होंने अपनी याचिका में कहा था, 'ये अदालतें समानांतर कोर्ट के तौर पर काम करती हैं और मुस्लिमों की धार्मिक व सामाजिक आजादी निर्धारित करती हैं, जो कि गैर-कानूनी है.'