जयललिता के निधन से तमिलनाडु की राजनीति में उपजे निर्वात को भरने के लिए उनकी परछाई शशिकला नटराजन ने कमर कस लिया है. 6 दिसंबर को अम्मा के निधन से एक दिन पहले सोमवार को वो दिन भर पार्टी के विधायकों को पनीरसेल्वम के समर्थन में लामबंद करने में जुटी रहीं और आखिरकार रात 11.30 बजे जयललिता के निधन के ठीक दो घंटे बाद उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलवा दी.
निगाहें पार्टी के रिमोट कंट्रोल पर
बात यहीं खत्म नहीं हुई. यह तो शुरुआत भर थी. पनीरसेल्वम तो जया के विश्वस्त रहे हैं और जब जब अम्मा को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा तब तब उन्होंने एक वफादार के रूप में अम्मा की तस्वीर सीएम कुर्सी पर रख कर कुछ समय के लिए राजपाट संभाला और फिर अम्मा के वापस आते ही उन्हें सत्ता सौंप दी. अन्ना द्रमुख में पार्टी अध्यक्ष का पद नहीं है यहां जनरल सेक्रेटरी के रूप में जयललिता ही सर्वेसर्वा थीं और उनके निधन से यह पद खाली पड़ा है. जानकारों की नजर में शशिकला इसी पद पर आंखे गड़ाए बैठी हैं. वो खुद या अपने सबसे विश्वस्त को ही रिमोर्ट कंट्रोल थमाना चाहती हैं.
इतनी भी जल्दी क्या है?
शशिकला इस मौके को किसी कीमत से गंवाना नहीं चाहतीं. हालांकि उनमें सत्तासीन होने की थोड़ी हड़बड़ी दिख रही है. जया के अंतिम संस्कार के ठीक अगले ही दिन उनके पति समेत परिवार के कई अन्य सदस्य पोएस गार्डन स्थित आवास में वापस पहुंच गए. तो इसके एक दिन बाद वो राज्य के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात करने में लगी रहीं और शाम तक मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम समेत कई दिग्गज मंत्रियों से भी मिलीं. शुक्रवार को भी कमोबेश वेद निलयम का माहौल कुछ ऐसा ही रहा. जयललिता के बाद सत्ता का वर्तमान केंद्र बन चुकीं शशिकला से एक बार फिर कई मत्रियों समेत मुख्यमंत्री ने मुलाकात की.
जयललिता तक कैसे पहुंची शशिकला?
शशिकला से जयललिता की मुलाकात 1980 के दशक में हुई थी. तब वो पार्टी की प्रचार सचिव थीं. इसकी नींव 1977 में रखी गई. तब एमजी रामाचंद्रन ने आईएएस अधिकारी वीएस चंद्रलेखा को तमिलनाडु की पहली महिला जिलाधिकारी नियुक्त किया. उन्हें कुड्डुर जिला सौंपा गया. चंद्रलेखा को जल्दी आगे बढ़ने की ललक थी. वो स्थानीय मीडिया में अपनी गतिविधियों को छपते देखना चाहती थी और इसी वजह से उन्होंने एक पीआरओ की नियुक्ति की. ये पीआरओ थे एम नटराजन यानी शशिकला के पति. एम नटराजन ने स्थानीय अखबारों के पत्रकारों के जरिए चंद्रलेखा को जल्द ही स्टार बना दिया और उनके चर्चे मुख्यमंत्री एमजीआर तक पहुंचने लगे. एमजीआर से चंद्रलेखा की नजदिकियां बढ़ीं और उन्हें मदुरई ट्रांसफर कर दिया गया. चंद्रलेखा के साथ ही नटराजन और उनकी पत्नी शशिकला भी मदुरई पहुंच गए.
जयललिता से शशिकला की पहली मुलाकात
1981 में एमजीआर तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता को लेकर आए और उन्हें पार्टी की प्रचार सचिव नियुक्त किया. फिल्म स्टार के रूप में वो खासा प्रसिद्ध तो पहले से थी हीं, वो राज्य जहां लोग फिल्मी कथानक को वास्तविक जिंदगी में हाथों हाथ लेते हैं जल्द ही वहां के लोगों को उनमें एमजीआर की छवि दिखने लगी. 1982 में एमजीआर ने जयललिता को राज्यसभा भेजा. तब तक पार्टी में यह संदेश जा चुका था कि वो जयललिता को अपनी उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रहे हैं. जयललिता रैलियां करने लगीं. ऐसी ही एक रैली का आयोजन मदुरई में किया गया. यह महिला रैली थी और इसी दौरान एमजीआर ने शशिकला से कहा कि वो जयललिता का ख्याल रखें और यह भी कि रैली सफल हो. इसी रैली में जयललिता को महिला अधिकारों की योद्धा के रूप में प्रचारित किया गया. रैली बेहद सफल रही और साथ ही शशिकला का जयललिता के जीवन में सफल प्रवेश भी.
जब शशिकला से खफा हुईं जयललिता
2011 में जयललिता ने पोएस गार्डन स्थित आवास से शशिकला और उनके परिवार को बाहर कर दिया था. साथ ही वो पार्टी से भी निष्काषित कर दी गई थीं. इतना ही नहीं उनके पति को 2012 में जयललिता सरकार ने जेल भेज कर राजनीति से पूरी तरह से दूर कर दिया था क्योंकि शशिकला और उनके परिवार पर राज्य की सरकार के समानांन्तर सरकार चलाने का आरोप लगा. हालांकि मार्च 2012 में शशिकला के लिखित माफीनामे और परिवार से पूरी तरह से दूर रहने की शर्त पर जयललिता ने उन्हें वापस बुला लिया. 6 दिसंबर को जयललिता के निधन के बाद उनके आवास पोएस गार्डन में न केवल शशिकला के पति बल्कि उनके भाई दिवाहरन, ननद जे इलावारसी, बेटे विवेक, बहन प्रिया, भतीजे वेंकटेश और महादेवन और भतीजी के पति शिवकुमार की भी वापसी हो गई है. शशिकला को जानने वाले यह मानते हैं कि उनकी राजनीतिक सोच उनके पति के अनुसार चलती है.
आसान नहीं है राह
जयललिता को करीब से जानने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी का मानना है कि शशिकला किसी दूसरे को खड़े होते नहीं देखना चाहती हैं और इसलिए पनीरसेल्वम भी लंबी रेस के घोड़ा साबित नहीं होने वाले. अन्ना द्रमुक के 30 फीसदी विधायक तमिलनाडु के थेवर समुदाय से आते हैं. इसी समुदाय से मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम और खुद शशिकला भी हैं. लेकिन शशिकला के लिए राह इतनी भी आसान नहीं है क्योंकि जयललिता की तरह वो ब्राह्मण परिवार से नहीं हैं. मतलब साफ है कि अन्य 70 फीसदी विधायकों का समर्थन जुटाने के लिए उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ेगी.