संस्कृत और हिन्दी साहित्य में आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी का काफी अहम योगदान है. उनके इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.
महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी का जन्म 5 जनवरी सन् 1916 को औरंगाबाद जिले के दक्षिण-पश्चिम में बसे गांव मैगरा में हुआ था.
मध्यमा की तैयारी में जुटे थे कि जानकी वल्लभ जी का विवाह मात्र 12 वर्ष की उम्र में ग्राम पहरा (गया अब औरंगाबाद) निवासी पं. लक्ष्मण मिश्र की सुपुत्री चंद्रकला देवी से कर दी गई. वधु वर से तीन वर्ष बड़ी थी.
1930 तक आचार्य श्री की संस्कृत की कविताएं संस्कृत की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं - संस्कृतम्, सुप्रभातम् और सूर्योदय में काफी प्रकाशित हुई थी. शास्त्री जी ने बनारस में 1935 में शास्त्री और मैट्रिक और सन् 1938 में शास्त्राचार्य व इंटर की शिक्षा प्राप्त की. वाराणसी में ही सन् 1935 में महाप्राण निराला से भेंट हुई. सोलह वर्ष की उम्र में संस्कृत काव्य संग्रह को देखकर महाप्राण ने ही आचार्य श्री से हिन्दी में कविता रचने को कहा.
उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं की सूची:
मेघगीत, अवन्तिका, श्यामासंगीत, राधा (सात खण्डों में), इरावती, एक किरण: सौ झाइयां, दो तिनकों का घोंसला, कालीदास, बांसों का झुरमुट, अशोक वन, सत्यकाम, आदमी, मन की बात, जो न बिक सकी, स्मृति के वातायन, निराला के पत्र, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज, कर्मक्षेत्रे: मरुक्षेत्रे, एक असाहित्यिक की डायरी
गृह मंत्रालय की तरफ से बायो-डाटा मांगा गया था. शास्त्री जी को य बात ठीक नहीं लगी. उन्होंने कह दिया कि जिन लोगों को मेरे कृतित्व की जानकारी नहीं है, उनके पुरस्कार का कोई मतलब नहीं है. शास्त्री जी ने गृह मंत्रालय से मिली चिठ्ठी पर पद्मश्री अस्वीकार लिखकर वापस गृह मंत्रालय भारत सरकार को भेज दिया था.