वह दौर था देश की राजधानी दिल्ली की सियासत में बदलाव का. 20वीं सदी के अंतिम दशक में राम मंदिर पूरे शबाब पर था. इसी दौरान साल 1993 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए. कांग्रेस को मात देकर भाजपा दिल्ली राज्य की गद्दी पर काबिज हुई. कांग्रेस इस हार से उबर भी नहीं पाई थी कि सांगठनिक चुनाव के बाद गुटबाजी, 1996 के लोकसभा चुनाव में भी मात खाकर कांग्रेस और बिखरती चली गई.
सन 1998 में विधानसभा चुनाव होने थे और बिखरी कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं था, जो संगठन को तेवर दे सके. ऐसे हालात में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की प्रदेश इकाई की कमान एक ऐसे चेहरे को दी, जो दिल्ली का नहीं था लेकिन दिल्ली से अनजान भी नहीं था. पंजाब में जन्म हुआ और देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश से सियासी सफर की शुरुआत की.
जब दिल की बात कहने के लिए शीला दीक्षित ने किया एक घंटे DTC बस का सफर
तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि यही चेहरा दिल्ली कांग्रेस का पर्याय बन जाएगा. सत्ता पर ऐसे जम जाएगा कि उसके पैर उखाड़ने में भी विपक्ष को एक नहीं, कई चुनाव तक इंतजार करना पड़ेगा. यहां हम बात कर रहे हैं एक नहीं, दो बार नहीं, बल्कि तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं पंजाब की बेटी और उत्तर प्रदेश की बहू शीला दीक्षित की.
कमान संभालते ही बदल दिए कांग्रेस के तेवर
शीला दीक्षित ने जब दिल्ली कांग्रेस की कमान संभाली, चंद माह बाद ही विधानसभा चुनाव होने थे. शीला ने लगभग शिथिल पड़ी कांग्रेस में नई जान फूंक दी. कमान संभालते ही कांग्रेस के तेवर बदल दिए. दिल्ली की तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ कई आंदोलनों को नेतृत्व दिया. प्याज की निरंकुश बढ़ती कीमत के मुद्दे पर भी सड़क पर उतरकर संघर्ष किया. शीला का संघर्ष रंग लाया और प्याज की कीमतों के मुद्दे ने तब राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया.
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उखाड़ दी सुषमा स्वराज की सत्ता
शीला का संघर्ष रंग लाया और कांग्रेस ने सत्ताधारी भाजपा को करारी मात दी. तत्कालीन मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज स्वयं की सीट जीतने में तो सफल रहीं, लेकिन भाजपा महज 15 सीट पर सिमट गई. कांग्रेस ने 52 विधानसभा सीटें जीतकर प्रदेश में सरकार बनाई और इस जीत की शिल्पकार रहीं शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं.
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दिल्ली की सियासत में आईं और छा गईं
सन 1998 में दिल्ली की सियासत में पैर रखने वाली शीला दीक्षित आईं और छा गईं. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में विपक्षी भाजपा की केंद्र सरकार के साथ भी तालमेल बनाकर कार्य किया और दिल्ली में विकास की नई इबारत लिखी. दिल्ली वालों का दिल ऐसा जीता, कि 1998 की जीत का कारवां 2003 और 2008 में भी चलता रहा.
अध्यक्ष से शुरू, अध्यक्ष पर खत्म हुआ शीला का सफर
लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनकर देश में सबसे लंबे समय तक महिला मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड कायम करने वाली शीला दीक्षित का नाता दिल्ली से ताउम्र नहीं टूटा. दिल्ली में अपने सियासी सफर का आगाज उन्होंने जिस प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से की थी, उसी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर रहते हुए दिल्ली के ही अस्पताल में शीला दीक्षित ने अंतिम सांस ली.