बीएमसी चुनाव के मद्देनजर शिवसेना ने मुंबई में गुजराती, राजस्थानी और मारवाड़ी वोट बैंक पर डोरे डालना शुरू कर दिया है. शिवसेना ने गुजराती समेत राजस्थानी और उत्तर भारतीय चेहरों को पार्टी में जगह देना शुरू कर दिया है. बड़े पैमाने पर मुंबई में शिवसेना में सियासी अहमियत वाले पदों पर नियुक्ति की जा रही है.
मुंबई शहर में बेहद खास सियासी अहमियत शिवसेना की शाखा रखती है, लेकिन एक जमाने में सिर्फ मराठी आदमी का गढ़ माने जाने वाली इन शाखाओं में अब गुजराती और अन्य भाषिक भी अन्य पदों पर नियुक्त हो रहे हैं और शिवसेना शाखा में पार्टी की स्थानीय राजनैतिक रणनीति तय करने लगे हैं. दरअसल मुंबई में अगले साल बीएमसी चुनाव है. लिहाजा शिवसेना भी मुंबई में बसे दूसरे राज्यों के वोट बैंक के मद्देनजर नई रणनीति लेकर मैदान में उतर गई है. शिवसेना का यह प्रयास बीजेपी से उनका परंपरिक मतदाता चुराने का है.
शिवसेना ने बदली चाल
'आज तक' से बात करते वक्त कांदिवली के शिवसेना शाखा प्रमुख लालसिंह राजपुरोहित ने कहा कि हम गुजराती और मारवाड़ी जरूर हैं, लेकिन पार्टी के प्रति हम निष्ठा रखने वाले हैं. पिछले कई सालों से हम शिवसेना के लिए काम कर रहें हैं. हमें पद मिला वो हमारे काम को देखकर मिला, ना कि हमारी भाषा को देखकर. बीजेपी मुंबई में गुजराती वोट बैंक पर खास कब्जा रखती है और देश की सबसे मालामाल बीएमसी चुनाव में इस बार बीजेपी शिवसेना से अलग अकेले अपने दम पर चुनावी समर में कूदने की तैयारी में है. लिहाजा अलग-थलग पड़ चुकी शिवसेना अपने पारंपरिक मराठी वोट बैंक के अलावा नए वोट बैंक जुटाने में लगी है और बीजेपी के गुजराती वोट बैंक में सेंध लगाने की फिराक में सियासी पैंतरा चल पड़ी है.
शिवसेना की दलील है कि पार्टी कभी धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर लोगों को जगह देने के बजाय पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और समाजसेवी भाव के मद्देनजर अहमियत देती है. हालांकि हमेशा मराठी मानुष का राग अलापने वाली शिवसेना में अचानक आए इस बदलाव पर विपक्ष चुटकी ले रहा है.
गैर-मराठी वोट पर हर दल की नजर
बीएमसी चुनाव सिर पर हैं तो शिवसेना पार्टी का चेहरा मोहरा बदलने की जुगत में है, लेकिन कमोबेश यही हाल दूसरी सियासी जमातों का भी है. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और एनसीपी ने गुजराती , राजस्थानी और उत्तर भारतीय चेहरों को पार्टी में अहमियत देना शुरू कर दिया है. दरअसल मराठी वोट बैंक के साथ-साथ मुबई में बड़े पैमाने पर प्रांत के बाहर से आए बसे गुजराती, राजस्थानी और उत्तर भारतीय वोट बैंक हैं, जिसकी चुनाव में खास अहमियत होती है. ये वोट बैंक किसी भी पार्टी का बेड़ा पार या बंटाधार करने में अहम भूमिका निभाते है. अब देखना होगा की आगामी बीएमसी चुनाव में यह गैर-मराठी मतदाता किसका पाले में भर-भर के अपने कीमती वोट डालते हैं.