शिवसेना के मुखपत्र सामना ने अपने संपादकीय में एक बार फिर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला है. अपने संपादकीय में सामना ने लिखा कि देश में अराजक जैसी स्थिति हो गई है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी जापान में 'चॉपस्टिक डांडिया' खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं.
सामना ने लिखा कि दिल्ली की राज व्यवस्था की स्थिति 'तांगा पलटा, घोड़े फरार' जैसी दिखाई देती है. राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी घटना घटती हुई दिखाई दे रही है कि 'अराजक' या 'गृहयुद्ध' जैसे शब्दों की धार कम पड़ जाए.
न्याय व्यवस्था में पहली बगावत
उसने आगे लिखा कि पहले हमारी न्याय व्यवस्था में बगावत हुई. सर्वोच्च न्यायालय के चार प्रमुख न्यायमूर्तियों ने पत्रकार परिषद (पीसी) बुलाकर बगावत की तोप दागी. अब 'सीबीआई' में भी उसी तरह की बगावत का कोहराम मचा है. रक्षा विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के कुछ बड़े अधिकारियों को जबरन छुट्टी पर भेजने की घटना भी उसी घटना की प्रक्रिया का एक हिस्सा है.
सरकार के खिलाफ संवैधानिक संस्थाओं के विवादों में घिरे होने के बीच प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा पर सामना लिखता है कि देश के प्रशासनिक क्षेत्र की चार प्रमुख संस्थाओं ने सरकार की जुमलेबाजी के खिलाफ तेवर अपनाए हैं. यह सब कुछ जब (स्वदेश) यहां हो रहा है तब प्रधानमंत्री मोदी जापान में पहुंच चुके थे.
'चॉपस्टिक डांडिया'
'जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने मोदी की मेजबानी की. उस मेजबानी में आबे ने मोदी को प्लास्टिक के 'चॉपस्टिक' की सहायता से किस तरह खाया जाए, इसका प्रशिक्षण दिया. यहां देश में अराजक जैसी स्थिति है और जापान में प्रधानमंत्री मोदी 'चॉपस्टिक डांडिया' खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं.'
'सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया है और उसकी जांच अब सेवानिवृत्त न्यायाधीश के मार्फत की जाएगी. मोदी सरकार द्वारा नामित विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने प्रधानमंत्री कार्यालय के नाम पर जो सीधे हस्तक्षेप किया, उसी की वजह से वर्मा बनाम अस्थाना ऐसा गिरोह युद्ध सीबीआई में जारी हुआ.'
'एक-दूसरे के लोगों को गिरफ्तार करने से लेकर कार्यालय पर छापा मारने का तमाशा हुआ, जिसके चलते राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रशासन की धज्जियां उड़ गर्इं. 'सीबीआई' सरकार के हाथ की गुड़िया है, ऐसा हमेशा कहा जाता है लेकिन उस गुड़िया पर सीधे व्यक्तिगत मालिकाना हक बना रहे, ऐसी कोशिश शुरू की गई.'
जानबूझकर सीबीआई विवाद
सीबीआई में जारी झगड़े को सुनियोजित योजना बताते हुए सामना आगे लिखता है, 'सीबीआई में नंबर एक और दो का विवाद जान-बूझकर पैदा किया गया है. वर्मा जब निदेशक थे तब अस्थाना उनके काम में रुकावट डालते थे. इसके पीछे निश्चित ही किसी की प्रेरणादायी शक्ति हो सकती है. राहुल गांधी ने सीबीआई विवाद के विषय को राफेल मामले से जोड़ा है. आलोक वर्मा राफेल मामले की जांच करना चाहते थे और इस संदर्भ में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की थी.'
'यह और ज्यादा आगे न बढ़े, इसके लिए अस्थाना के जरिए वर्मा पर हमला किया गया, ऐसा राहुल गांधी का कहना है. अस्थाना गुजरात कैडर के अधिकारी हैं और वे मोदी-शाह के अत्यंत विश्वसनीय हैं. इस संदर्भ में आपत्ति जताने जैसा कुछ भी नहीं लेकिन उनकी निष्पक्षता पर आशंका है और बीजेपी 'शार्प शूटर' के रूप में ही वे जाने जाते हैं.'
'सीबीआई' पर अब तक आरोप लगे लेकिन आज जिस तरह का कीचड़ उस पर उछल रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. ऐसा लगता है कि सीबीआई बीजेपी सरकार के घर में बंधा हुआ कुत्ता है. उस कुत्ते के पेट में आज कोई भी लात मार रहा है, यह तस्वीर अच्छी नहीं.
सृजन घोटाला और राकेश अस्थाना
सामना आगे लिखता है कि बिहार के बदनाम सृजन घोटाले से इसी राकेश अस्थाना ने नीतीश कुमार को बचाया था और उसी दबाव के चलते नीतीश कुमार को लालू का साथ छोड़ने पर मजबूर कर उन्हें बीजेपी के तंबू में ढकेला गया, ऐसा अब सरेआम कहा जा रहा है. यह सृजन घोटाला ढाई हजार करोड़ का था और नीतीश कुमार पर तब आरोप लगे थे.
'आगे चारा घोटाले में लालू यादव को गिरफ्तार करने वाले यही अस्थाना थे. 2002 में गुजरात के गोधरा में हुए साबरमती एक्सप्रेस अग्निकांड मामले की जांच यंत्रणा के प्रमुख के रूप में मुख्यमंत्री मोदी ने इन्हीं की नियुक्ति की थी. आसाराम बापू मामले की जांच और कार्रवाई भी अस्थाना ने ही की थी.'
'मतलब बीजेपी नेताओं को जैसा चाहिए, वैसा वे करते गए और मोदी ने उन्हें सीबीआई का विशेष निदेशक नियुक्त कर उसी सेवा का पुरस्कार दिया. सीबीआई की आज जो दुर्दशा हुई है, वो इसी राजनीतिक हस्तक्षेप और घुसपैठ के कारण.'
ध्वस्त की जा रही राज व्यवस्था
'राज व्यवस्था का एक-एक खंभा इस तरह ध्वस्त किया जा रहा है. राष्ट्रपति भवन पहले ही अचेत कर दिया गया है. कैबिनेट का भी वैसे कोई मतलब नहीं रह गया है. गृहमंत्री हैं, पर सीबीआई जैसी संस्थाओं पर नियंत्रण प्रधानमंत्री कार्यालय से हो रहा है.'
'अदालत का दिमाग पहले ही अस्थिर कर दिया गया है और संसद को भी बहुत महत्व नहीं दिया जा रहा है. देश के प्रमुख स्तंभों की आज 'चॉपस्टिक' की काड़ी जितनी भी कीमत नहीं बची है. मोदी जापान में चॉपस्टिक से वैसे खाएं, यह सीख रहे हैं. इधर हिंदुस्थानी राज व्यवस्था के चार प्रमुख स्तंभ ही अब 'काड़ी' बन गए हैं.'