क्या अपनी पार्टी के किसी मुख्यमंत्री की तारीफ करने के लिए किसी दूसरे मुख्यमंत्री के कामकाज से मिलान करना जरूरी है.
लगता है कि बीजेपी के भीष्मपितामह लालकृष्ण आडवाणी को मोदी से ज्यादा शिवराज सिंह चौहान भाने लगे हैं. आलम ये है कि कभी हर पल मोदी की तारीफों के पुल बांधने वाले आडवाणी अब शिवराज के गुणगाण में लगे हैं.
कारण कहीं ये पीएम इन वेटिंग को लेकर चल रही रस्साकसी का नतीजा तो नहीं. लोक सभा के चुनाव के लिए जो टीम तैयार हुई है उसमें मोदी की खूब चली है, क्या ये है मोदी से डर की वजह.
आडवाणी ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से तुलना करते हुए दोनों को अहंकार से परे बताया जबकि उन्होंने विकास के लिये शिवराज की तुलना गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से की.
आडवाणी ने नगर-ग्राम केन्द्रों के पालकों और संयोजकों के सम्मेलन के समापन के अवसर पर कहा कि वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में (जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे) में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण और उन्नयन, परमाणु परीक्षण, किसान क्रेडिट कार्ड से लेकर अनेक योजनायें शुरू कीं लेकिन हमेशा वे अहंकार से दूर रहे.
उन्होंने देश में आज तक हुए प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल की तुलना करते हुए दावा किया कि इनमें वाजपेयी का कार्यकाल सबसे बेहतर और सफल रहा है.
आडवाणी ने कहा कि इसी प्रकार चौहान ने जनता के कल्याण के लिये लाडली लक्ष्मी और मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन सहित अनेक कल्याकारी योजनायें लागू की. उन्होंने कहा कि शिवराज सिंह की कल्पनाशीलता से मध्यप्रदेश विकास की नई बुलंदिया हासिल कर रहा है.
मोदी के लिए दिल्ली दूर है. आडवाणी ने ये नहीं कहा कि वो रिटायर हो रहे हैं. आडवाणी ने अबतक ये भी नहीं कहा है कि वो पीएम की रेस में नहीं हैं. माना जा रहा था कि कर्नाटक चुनाव से मोदी दिल्ली की सक्रीय राजनीति में कूदेंगे लेकिन उन्होंने प्रचार के लिए दिए महज दो दिन और यहां तक की दो चुनाव समिति की बैठकों से भी नदारद रहे.
ऐसे मौके पर जब हफ्ते भर में बीजेपी की कार्यकारिणी की बैठक होने वाली हो तब आडवाणी का ये बयान यूं हीं नहीं हो सकता. इस बयान का सियासी मतलब तो निकाला ही जाएगा.