आगरा धर्मांतरण मामले के बाद से पूरे देश में इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई है. संसद का शीतकालीन सत्र भी इस मुद्दे से गर्म है. पूरा विपक्ष सरकार को घेरे खड़ा है. अपने बयानों के लिये ख्यात पीएम इस मामले में “मनमोहन” से हो गए हैं. उधर अब शिवसेना ने केन्द्र और बीजेपी की नीयत पर सवाल खड़े कर दिये हैं. शिवसेना के मुख पत्र सामना में बीजेपी की केन्द्र सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा किया गया है.
धर्मांतरण पर सामना के सम्पादकीय में हिंदूवादी संगठनों के उत्साह को सराहा गया है लेकिन सरकार की नीयत पर शक जताया गया है. शिवसेना कहती है कि कहीं ऐसा तो नही कि ये उत्साह मोदी सरकार के लिये परेशानी का सबब बन जाये? बात ग़लत नही है, जब से केन्द्र में बीजेपी की सरकार आई है देश में हिंदुवादी संगठनों के हौंसले बुलंद हैं. हर हफ्ते सरकार का कोई मंत्री या फिर कोई नेता बयानबाज़ी से नया विवाद खड़ा कर रहा है. जो विपक्ष भारी बहुमत वाली सरकार के सामने खुद को कमज़ोर महसूस कर रहा था, उसे खुद सरकार के कारिन्दों ने ही मुद्दे प्लेट में रख कर परोस दिये हैं.
मोदी अब अपनी सरकार के मंत्रियों, सांसदों और पार्टी नेताओं को फिज़ूल न बोलने की हिदायत दे रहे हैं. विपक्ष की मांग के बावजूद वे धर्मांतरण के मसले पर खामोशी अख्तियार किये बैठे हैं. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक को भी सम्पादकीय में जगह दी गई है. खुद को राम मंदिर का पुजारी बताने वाले नाईक के बारे में कहा गया है कि राम नाईक जो कहते हैं उसमें हर्ज ही क्या है? भले ही वो आज राज्यपाल हों, लेकिन वे संघ के स्वंयसेवक हैं और मंदिर आंदोलन के कार सेवक भी.
शिवसेना ने साफ इशारा किया है कि जिस तरह से हिंदूवादी संगठनों ने धर्मांतरण को मिशन बना लिया है कहीं उसे सरकार का समर्थन तो हासिल नहीं? दरअसल शिवसेना ही नही बल्कि कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है. सरकार की चुप्पी भी इस मामले में संदिग्ध है. हालांकि आगरा मामले में बवाल बढ़ने पर अमित शाह ने कहा था कि बलपूर्वक धर्मांतरण मंजूर नही है. लेकिन बावजूद इसके देश के कई हिस्सों में चल रही 'घर वापसी' की तैयारी किस तरफ इशारा कर रही है?