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प्रख्‍यात साहित्‍यकार श्रीलाल शुक्‍ल नहीं रहे

देश के प्रख्‍यात साहित्‍यकार श्रीलाल शुक्‍ल अब इस दुनिया में नहीं रहे. लखनऊ के अस्‍पताल में उन्‍होंने अंतिम सांस ली.

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देश के प्रख्‍यात साहित्‍यकार श्रीलाल शुक्‍ल अब इस दुनिया में नहीं रहे. लखनऊ के अस्‍पताल में उन्‍होंने अंतिम सांस ली.

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वैसे तो श्रीलाल शुक्‍ल ने हिंदी साहित्‍य को कई अनुपम कृतियां दी हैं, पर वे 'राग दरबारी' उपन्‍यास से सबसे ज्‍यादा चर्चित हुए. हिंदी साहित्‍य में गोते लगाने वाला शायद ही कोई ऐसा शख्‍स होगा, जिसने इस उपन्‍यास को एक बार न पढ़ा हो.

उन्हें ‘पद्मभूषण’ के अलावा देश के शीर्ष साहित्य पुरकार ज्ञानपीठ एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के अतरौली में वर्ष 1925 में जन्मे श्रीलाल शुक्ल को हिन्दी साहित्य में कथा, व्यंग्य लेखन के लिए जाना जाता है. उन्हें उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'राग दरबारी' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इस पुस्तक का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है.

लंबे समय से बीमार चल रहे शुक्ल को 18 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था.

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श्रीलाल शुक्‍ल को साल 2009 का ज्ञानपीठ पुरस्‍कार मिला. वर्ष 2008 में उन्‍हें पद्मभूषण से सम्‍मानित किया गया. उत्तर प्रदेश में इन्‍होंने प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अहम भूमिका निभाई.

बहरहाल, श्रीलाल शुक्‍ल के निधन से हिंदी जगत को जो क्षति हुई है, उनकी भरपाई आने वाले दिनों में बड़ी मुश्किल से ही संभव है. साहित्कारों ने उनके निधन को हिन्दी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताया है.

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