सियाचिन पूरी दुनिया का इकलौता युद्धक्षेत्र (Warzone) है. इस युद्धक्षेत्र में भारतीय सेना के जवान 16 से 20 हजार फीट की ऊंचाई तक सीमा की सुरक्षा में तैनात हैं. सोमवार को भारतीय सेना की पोस्ट बर्फीले तूफान की चपेट में आ गई. इस घटना में 4 जवान शहीद हो गए, जबकि दो स्थानीय नागरिकों की मौत हो गई. यह घटना करीब 3.30 बजे की है. बताया जा रहा है कि 8 सदस्यों की पेट्रोलिंग टीम तूफान में फंसी थी.
सूत्रों के मुताबिक, रेस्क्यू टीम ने तूफान में फंसे 8 सदस्यों को बाहर निकाल लिया, जिसमें 4 जवान इलाज के दौरान शहीद हो गए. मृतकों में दो स्थानीय लोग भी शामिल हैं. अब भी 7 लोग गंभीर हैं, जिनका अस्पताल में इलाज चल रहा है. आइए जानते हैं कि 1984 के बाद से अब तक दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र पर बिना लड़े हमारे कितने जवान शहीद हो गए?
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सियाचिन में पाकिस्तान नहीं, मौसम है सबसे बड़ा दुश्मन
भारत और पाकिस्तान दोनों देश के जितने सैनिक यहां आपसी लड़ाई के कारण नहीं मारे गए हैं, उससे भी कहीं ज्यादा सैनिक यहां ऑक्सीजन की कमी, हिमस्खलन और बर्फीले तूफान के कारण मारे गए हैं. यहां ज्यादातर समय शून्य से भी 50 डिग्री नीचे तापमान रहता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के कुल मिलाकर 2500 जवानों को यहां अपनी जान गंवानी पड़ी है. 2012 में पाकिस्तान के गयारी बेस कैंप में हिमस्खलन के कारण 124 सैनिक और 11 नागरिकों की मौत हो गई थी.
1984 से अब तक 873 सैनिकों की खराब मौसम ने चलते गवाईं जान
सियाचिन को 1984 में मिलिट्री बेस बनाया गया था. तब से लेकर 2015 तक 869 सैनिक सिर्फ खराब मौसम के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. सियाचिन देश के उन कुछ गिने-चुने इलाकों में से एक है जहां न तो आसानी से पहुंचा जा सकता है और न ही दुनिया के इस सबसे ऊंचे युद्ध मैदान में जाना हर किसी के बस की बात नहीं. सोमवार यानी 18 नवंबर 2019 के चार जवानों को मिलाकर अब तक मरने वाले जवानों की कुल संख्या करीब 873 हो चुकी है.
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हर दिन जवानों पर 5 करोड़ रु. खर्च करती है भारत सरकार
भारत से हर दिन 5 करोड़ रुपए सियाचिन में मौजूद सैनिकों की सुरक्षा के लिए खर्च किए जाते हैं. यहां मौसम इतना खराब रहता है कि सिर्फ गन शॉट फायर करने या मेटल का कुछ भी छूने से ठंड से उंगलियां अकड़ सकती हैं यानी फ्रॉस्ट बाइट तक हो सकती है. ज्यादा दिन रहने पर देखने और सुनने में दिक्कत आती है. याद्दाशत कमजोर होने लगती है. उंगलियां गल जाती हैं. कई बार काटने तक की नौबत आ जाती है.
3 हजार सैनिक रहते हैं हमेशा तैनात
सियाचिन ग्लेशियर पर स्थित भारतीय सीमा की रक्षा के लिए 3 हजार सैनिक हमेशा तैनात रहते हैं. पाकिस्तान सियाचिन पर हमेशा से अपना दावा करते आया है, हालांकि पाक को सटीक जवाब मिलता रहता है.
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क्या कोई आम इंसान जा सकता है सियाचिन?
सियाचिन में सर्दियों में दौरान पारा -60 डिग्री तक जाता है. गर्मियों में तापमान -30 डिग्री तक रहता है. आम इंसानों को पानामिक गांव तक ही जाने की अनुमति है. ये एक छोटा सा गांव है जहां के गर्म पानी के स्रोत इसे आकर्षण का केंद्र बनाते हैं. हालांकि, भारतीय सेना की तरफ से सियाचिन की सालाना सिविलियन ट्रेक ऑर्गेनाइज की जाती है. ये इकलौता मौका होता है जब आम इंसान सियाचिन जा सकते हैं. आर्मी 40 लोगों को लेकर जाती है इसमें दो पत्रकार, डिफेंस साइंटिस्ट, स्कूल कैडेट और कुछ सिविलियन होते हैं. 2007 में इस तरह के ट्रैक की शुरुआत हुई थी.
ये ट्रैक बताता है भारतीय सेना की ताकत
ये ट्रैक इस बात का सबूत देता है कि भारत कितनी भी ऊंचाई पर अपनी सीमा की रक्षा कर सकता है. जो 40 लोग चुने जाते हैं पहले उनका मेडिकल चेकअप होता है, जो अनफिट होते हैं उन्हें वापस भेज दिया जाता है. फिर दो दिन सिर्फ हवा और तापमान के साथ एडजस्ट करने के लिए दिए जाते हैं. इसके बाद 8 दिन की ट्रेनिंग होती है सियाचिन बैटल स्कूल में. ये वही जगह है जहां सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वो ग्लैशियर पर अपनी जान बचा सकें. यहां ट्रैक में चुने गए लोगों को 8 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है और इसके बाद फिर से मेडिकल चेकअप होता है. ये चेकअप बताता है कि लोग आगे जाएंगे या नहीं. इसमें से भी कई अनफिट करार दे दिए जाते हैं.
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16 हजार फीट की ट्रैकिंग कराती है भारतीय सेना
भारतीय सेना ट्रैक पर गए आम लोगों को 16 हजार फीट पर मौजूद कुमार पोस्ट तक लेकर जाती है. बेस कैंप से 12 किमी ऊपर चलने के बाद आता है कैंप-1. इसके बाद 14 किमी चलकर ट्रैकर पहुंचते हैं कैंप-2. तक. फिर यहां से 16 किमी चलकर आर कैंप-3 तक पहुंचेंगे और फिर 18 किमी और चलकर कुमार पोस्ट पहुंचते हैं.
ट्रैक पर जाने से पहले होती है ओपी बाबा की पूजा
सियाचिन में 80 के दशक में ओपी नाम का एक सैनिक लापता हो गया था. तब से ये मान्यता है कि सियाचिन के सैनिकों की रक्षा ओपी बाबा करते हैं. यहां तक कि कोई भी सैनिक ओपी बाबा को प्रणाम किए बिना आगे नहीं बढ़ता. ये 60 किमी का ट्रैक 4 दिन में खत्म होता है. 20 हज़ार फीट की उंचाई पर जाकर समझ आता है कि हमारे सैनिक किस तरह की मुसीबतों का सामना करते हैं.
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क्यों जरूरी है सियाचिन पर कब्जा बनाए रखना?
सियाचिन ग्लेशियर काराकोरम रेंज में स्थित है. हिमालय की ये जगह भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच एक त्रिभुज के आकार में है. पाकिस्तान का भाग बहुत कम है. सियाचिन भारत के लिए काफी जरूरी है क्योंकि...
समुद्र तल से 16-18 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है. दूसरी तरफ चीना की सीमा अक्साई चीन इस इलाके में है. दोनों देशों पर नजर रखने के हिसाब से यह क्षेत्र भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है. 1972 के शिमला समझौते में इस इलाके को बेजान और बंजर करार दिया गया यानी यह इलाका इंसानों के रहने के लायक नहीं है. इस समझौते में यह नहीं बताया गया कि भारत और पाकिस्तान की सीमा सियाचिन में कहां होगी. उसके बाद से इस क्षेत्र पर पाकिस्तान ने अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया. इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर फिलहाल भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है.
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1984 में पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जे की तैयारी में था लेकिन सही समय पर इसकी जानकारी होने के बाद सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया. 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर पर भारत ने कब्जा कर लिया. इससे पहले इस क्षेत्र में सिर्फ पर्वतारोही आते थे. अब यहां सेना के अलावा किसी दूसरे के आने की मनाही हो गई. 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम संधि हो गई. उस समय से इस क्षेत्र में फायरिंग और गोलाबारी होनी बंद हो गई है.