सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की किस्मत अब चुनाव आयोग के हाथ में है. प्रेम सिंह तमांग ने निर्वाचन आयोग से गुहार लगाई है कि उनकी अयोग्यता की अवधि पर 30 सितंबर से पहले फैसला कर दिया जाए.
इस अर्ज़ी के साथ तमांग ने निर्वाचन आयोग से मुलाकात भी की. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दोनों आयुक्तों के साथ निर्वाचन सदन में हुई मुलाकात में तमांग ने अपना पक्ष रखा.
तमांग ने कहा कि वो 27 मई को मुख्यमंत्री नियुक्त हुए हैं. छह महीने के भीतर उन्हें चुनकर विधानसभा आना है. लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में वो सजायाफ्ता होने से चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं. अगर आयोग उनके चुनाव लड़ने पर लगी पाबंदी नहीं उठाएगा तो इस्तीफा देना पड़ेगा.
तमांग 1990 के दशक में पशुपालन मंत्री रहते हुए ‘गाय वितरण योजना’ में सरकारी धन के दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया था. उन्हें विश्वास भंग करने, आपराधिक साजिश रचने और सरकारी सेवक रहने के दौरान अपने पद का भारी दुरूपयोग करने के अपराधों में भी दोषी ठहराया गया था. इसके बाद 2017 से 2018 तक वह एक साल जेल में रहे थे. वह 10 अगस्त, 2018 को जेल से रिहा हुए.
क्या कहता है नियम?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के मुताबिक, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत दोषी ठहराए गए और जेल में बंद लोगों को कारावास की अवधि के दौरान और रिहा होने के 6 साल बाद तक चुनाव नहीं लड़ सकते. इसके अलावा 1951 की धारा 11 के तहत चुनाव आयोग के पास अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने की शक्ति है. यही कारण है कि तमांग ने चुनाव आयोग से 30 सितंबर तक उनकी अयोग्यता अवधि पर फैसला लेने को कहा है.
तमांग की पार्टी सिक्किम क्रांति मोर्चा (एसकेएम) ने राज्य के विधानसभा चुनावों में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को करारी मात दी थी और लगातार 5 बार के शासन का अंत किया था. तमांग की पार्टी बीजेपी की सहयोगी है और केंद्र में एनडीए का हिस्सा है.