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PM मोदी और पंडित नेहरू के बीच समानता

देश में प्रतीकों की विरासत पर सियासत अपने चरम पर है. अब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में तनातनी हो गई है. कांग्रेस दलील देती है कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विचारधारा नेहरू की सोच से मेल नहीं खाती. वैसे कई लोगों को उनमें पंडित नेहरू की छवि भी नजर आती है. वाद-विवाद से दूर इतना तो साफ है कि मोदी को जनता ने पंडित नेहरू जैसा प्रचंड बहुमत दिया है. उन्हें उम्मीद है कि नेहरू के आधुनिक भारत के तर्ज पर वे 21वीं सदी के नए भारत का निर्माण करेंगे. आइए हम दोनों नेताओं के बीच की समानताओं को जानते हैं.

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नरेंद्र मोदी और पंडित जवाहर लाल नेहरू
नरेंद्र मोदी और पंडित जवाहर लाल नेहरू

देश में प्रतीकों की विरासत पर सियासत अपने चरम पर है. अब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में तनातनी हो गई है. कांग्रेस दलील देती है कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विचारधारा नेहरू की सोच से मेल नहीं खाती. वैसे कई लोगों को उनमें पंडित नेहरू की छवि भी नजर आती है. वाद-विवाद से दूर इतना तो साफ है कि मोदी को जनता ने पंडित नेहरू जैसा प्रचंड बहुमत दिया है. उन्हें उम्मीद है कि नेहरू के आधुनिक भारत के तर्ज पर वे 21वीं सदी के नए भारत का निर्माण करेंगे. आइए हम दोनों नेताओं के बीच की समानताओं को जानते हैं.

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1. अपनी पार्टी का चुनावी चेहरा
पंडित नेहरू कांग्रेस का पहला बड़ा चुनावी चेहरा थे. पार्टी ने उनके नाम और काम, दोनों का इस्तेमाल वोट बटोरने के लिए किया. चाहे जम्मू-कश्मीर हो या फिर तमिलनाडु, नेहरू के समर्थक हर जगह मौजूद थे. इसका फायदा पार्टी को आजादी के बाद के दिनों में होता रहा. कुछ ऐसी ही नीति पर बीजेपी भी निकल पड़ी है. नरेंद्र मोदी के नाम का इस्तेमाल विधानसभा चुनावों में हो रहा है. महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे इसके सबूत हैं और आने वाले दिनों में झारखंड, जम्मू-कश्मीर व दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी इसी रणनीति की छाप नजर आएगी.

2. विदेश नीति पर अपनी-अपनी छाप
नेहरू की पहचान एक वर्ल्ड लीडर की तरह थी. उनकी निजी सोच की छाप तत्कालीन सरकार की विदेश नीतियों में साफ झलकती. चाहे वह पड़ोसी मुल्कों से अच्छे रिश्ते हों या फिर शांति व स्थिरता का संदेश. नेहरू प्रखरता से अपनी इन नीतियों का पालन करते. कई जानकार तो यहां तक कहते हैं कि हकीकत में उस सरकार के विदेश मंत्री भी नेहरू ही थे. कुछ ऐसा ही हाल मोदी सरकार का है. 6 महीने के कार्यकाल में मोदी ने सबसे ज्यादा ठोस कदम किसी क्षेत्र में उठाए हैं, तो वह है विदेश नीति. भूटान, जापान, अमेरिका व नेपाल के दौरे के बाद अब म्यांमार, फिजी व ऑस्ट्रेलिया का दौरा. नरेंद्र मोदी भी अपने हिसाब से व प्राथमिकताओं के अनुसार विदेश नीति तय कर रहे हैं.

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3. नेहरू का आधुनिक भारत और मोदी का मेक इन इंडिया
आधुनिक भारत का निर्माण नेहरू जी ने किया. चाहे देश को औद्योगिक विकास के रास्ते ले जाना हो या फिर गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना. मोदी का मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट भी नेहरू के विजन से प्रेरित नजर आता है. मोदी देश को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाना चाहते हैं, ऐसा नेहरू ने भी सोचा था. नेहरू आर्थिक स्वावलंबन के पक्षधर थे और मोदी भी इसी ओर इशारा करते हैं.

4. सरकार और संगठन पर मजबूत पकड़
नेहरू का सिक्का कांग्रेस पार्टी में चलता था. उनके आगे बाकी सभी नेता फीके नजर आते. जब तक जीवित रहे तब तक उनके नेतृत्व पर ना कभी सवाल उठा और ना ही किसी ने उन्हें चुनौती देने की हिम्मत जुटाई. सरकार के साथ वह संगठन में भी मजबूत पकड़ रखते. मोदी ने अभी पूरी तरह से यह मुकाम तो हासिल नहीं किया पर वह धीरे-धीरे इसी ओर बढ़ रहे हैं. 2014 लोकसभा चुनाव की जीत से यह तय हो गया कि वह पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. अमित शाह को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाना व पार्टी के हर बड़े फैसलों पर उनकी मुहर, मोदी के बढ़ते कद की ओर ही इशारा करते हैं. पार्टी के सभी नेता अभी दूसरी कतार में हैं और अभी दूर-दूर तक उन्हें कोई चुनौती देता हुआ भी नहीं दिख रहा.

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5. आर्थिक नीति निर्धारण और कठोर नियंत्रण
देश विकास की पटरी पर तभी दौड़ेगा जब आपकी आर्थिक नीतियां स्पष्ट हों. नेहरू इस बात को जानते थे. नीतियों का निर्धारण नेहरू की छाप होती. चाहे वह पंचवर्षीय योजना हो या फिर योजना आयोग का गठन. वैसे मोदी ने योजना आयोग को तो भंग कर दिया है, पर वह भी केंद्र और राज्यों के बीच विकास की बराबर भागीदारी की वकालत करते हैं. जल्द ही योजना आयोग की जगह एक प्लानिंग पैनल का गठन होगा. यह मोदी की देन होगी. पीएम खुद आर्थिक नीतिओं की ब्योरा लेते रहते हैं. हर मंत्रालय के काम पर पीएमओ की नजर है.

6. दोनों की पैन इंडिया अपील
नेहरू की लोकप्रियता को भाषा या क्षेत्र के आधार पर नहीं आंका जा सकता. इसकी मुख्य वजह उनका आजादी के आंदोलन से जुड़ा रहना भी था. इसके अलावा नेहरू ने अपने संवाद कौशल का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया. वह अपना संदेश देश के हर कोने तक पहुंचाने में सफल रहे. नेहरू तमिलनाडु के किसी गांव में भी उतनी ही भीड़ जुटाते जितना इलाहाबाद के किसी कस्बे में. मोदी की भी लोकप्रियता को लेकर अभी कोई सवाल नहीं उठता. आज की तारीख में वह जनता की पहली पसंद हैं. अगर भीड़ जुटाना लोकप्रियता का पैमाना हो तो मोदी अपने समकालीन किसी भी नेता से मीलों आगे हैं. मोदी ने सोशल मीडिया को संवाद का जरिया बना दिया और गांवों तक पहुंचने के लिए एक बार फिर रेडियो का दामन थाम लिया.

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7. पड़ोसियों से रिश्ते हों मधुर
हम तभी आगे बढ़ेंगे जब हमारे पड़ोसी मुल्कों से रिश्ते अच्छे हों. SAARC का गठन इसी दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम था. नेहरू हमेशा से भारत की बिग ब्रदर वाली भूमिका की वकालत करते रहे. गुट निरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement) संगठन वैश्विक स्तर पर उनकी इसी परिकल्पना का नतीजा था. मोदी भी इसी राह चल पड़े हैं. वे फिलहाल लुक ईस्ट पॉलिसी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. अपने शपथ ग्रहण में समारोह में SAARC देशों के प्रतिनिधियों को न्योता देना, मोदी के तुरुप का इक्का था. नेपाल, भूटान व म्यांमार का दौरा मोदी की विदेश नीति के अहाम पड़ाव रहे हैं.

8. अच्छे वक्ता और कम्युनिकेशन का बेहतरीन इस्तेमाल
नीति बनाना एक बात और उसकी जानकारी जनता तक पहुंचाना दूसरी बात. नेहरू बेहतरीन वक्ता तो थे ही. साथ में अपनी नीतियों और विचारधारा को जनता तक पहुंचाने को हमेशा प्रमुखता दी. उनके कम्युनिकेशन की बदौलत ही उस जमाने में कांग्रेस की तूती बोली. मोदी भले ही नेहरू जितने विद्वान ना हों, पर संवाद के मामले में वे उनसे कम नहीं. सरकार की नीतियो को जनता को उन्हीं की भाषा में समझाना कोई मोदी से सीखे.

9. संसद को वरीयता व संसदीय बहस पर फोकस
संसद लोकतंत्र का मंदिर है. नेहरू ने हमेशा ही इसे वरीयता दी. संसदीय बहस की वकालत की. हमेशा कहते कि जनता के हित का फैसला उनके प्रतिनिधि ही करेंगे और नीतियां सड़क पर नहीं संसद में बनती हैं. मोदी भी जब पहले दिन सांसद बनकर संसद पहुंचे तो सीढ़ियों पर मत्था टेककर बता दिया कि वे इसका कितना सम्मान करते हैं. मोदी ने संसद में अपने पहले संबोधन में कहा था कि हम बहुमत की नहीं, विश्वास की सरकार चलाना चाहते हैं.

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