साल 2004 के इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में जेल में अब बंद एकमात्र आरोपी डीएसपी एन.के. अमीन को आज जमानत मिल गई. विशेष सीबीआई अदालत ने सेहत खराब होने और सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर अमीन को जमानत दी.
प्रोस्ट्रेट कैंसर से जूझ रहे अमीन को राहत देते हुए विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश के. आर. उपाध्याय ने कहा, ‘दो-दो लाख रुपये के निजी मुचलके और जमानत राशि पर जमानत अर्जी को स्वीकार किया जाता है.’ सीबीआई अदालत ने मामले में सह-आरोपियों आईपीएस अधिकारी डी.जी. वंजारा तथा पी.पी. पांडेय के साथ समानता के आधार पर भी उन्हें जमानत दी. इस मामले में उक्त दोनों आरोपियों को इस साल फरवरी में जमानत मिल चुकी है.
सीबीआई अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील को भी स्वीकार कर लिया कि मामले में सुनवाई शुरू होने में लंबा समय लग सकता है. हालांकि विशेष सीबीआई अदालत ने अमीन को उनका पासपोर्ट जमा करने और बिना पूर्व अनुमति के भारत से बाहर नहीं जाने का आदेश भी दिया है.
अदालत ने यह शर्त भी लगाई है कि अमीन ऐसा कोई प्रयास नहीं करेंगे, जिससे जांच बाधित हो. वह मामले से जुड़े किसी गवाह को प्रभावित करने की कोशिश भी नहीं करेंगे. अदालत के आदेश के अनुसार अमीन को हर गुरुवार को सीबीआई अदालत में पेश होना पड़ेगा और सुनवाई के दौरान मौजूद रहना होगा.
आपको बता दें कि अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जुलाई 2004 को हुई मुठभेड़ के दौरान अमीन विशेष शाखा में पुलिस उपाधीक्षक थे. मुठभेड़ में 19 साल की इशरत जहां, उसके दोस्त प्रणेश पिल्लै उर्फ जावेद शेख के साथ दो संदिग्ध पाकिस्तानी नागरिकों अमजद अली राणा और जीशान जौहर को अपराध शाखा के अधिकारियों ने मुठभेड़ में मार गिराया था.
अपराधा शाखा ने उस समय दावा किया था कि चारों लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने गुजरात आए थे. साल 2012 में दाखिल सीबीआई के आरोपपत्र के मुताबिक यह एक फर्जी मुठभेड़ थी, जिसे गुजरात पुलिस और आईबी ने मिलकर रचा था.
जमानत अर्जी पर सुनवाई में दलीलों के दौरान सीबीआई ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अमीन ने फर्जी मुठभेड़ में पांडेय और वंजारा से ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाई थी. अमीन ने 16 फरवरी को अन्य आरोपियों के साथ समानता के आधार पर जमानत अर्जी दाखिल की थी और अपनी बिगड़ती सेहत का भी हवाला दिया था.
इनपुट: भाषा