पश्चिम बंगाल में टाटा की लखटकिया नैनो कार परियोजना लगने से पहले ही उखड़ जाने के बाद अब वहां स्वेच्छा से जमीन देने वाले ज्यादातर किसानों ने परियोजना क्षेत्र की अपनी जमीन पर फिर खेती शुरू कर दी है.
ये किसान लंबे समय तक इस उम्मीद में अपने पारंपरिक पेशे से दूर बैठे रहे कि सिंगूर से हटने की टाटा समूह की घोषणा के मद्देनजर वहां औद्योगीकरण के लिए कोई सार्थक पहल होगी. टाटा समूह ने किसानों और संगठनों के एक वर्ग द्वारा भू अधिग्रहण के विरोध में भीषण आंदोलन के बीच परियोजना को छोड़ दिया.
टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने दो अक्टूबर 2008 को नैनो परियोजना से हटने की घोषणा की थी.
जोयमुल्ला गांव के सीमांत किसान विकास पाकीरा ने कहा, ‘अब हम चिरकाल तक तो प्रतीक्षा कर नहीं सकते. इंतजार की भी एक सीमा होती है.’ विकास उन किसानों में है जिन्होंने टाटा की परियोजना की घोषणा होने पर खुशी खुशी अपनी जमीन दे दी और मुआवजे का चेक स्वीकार कर लिया. विकास के पास एक बीघा जमीन थी. उसे लगता है कि उसने जमीन दे कर गलती कर दी थी अब वह दोबारा ऐसा नहीं करेगा.
नैनो के इंजन शॉप में काम के लिए पुणे में छह माह की ट्रेनिंग पाने वाला युवक पिंटू अब फिर खेतों में मजदूरी करने लगा है. उसने कहा, ‘मैंने शायद कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर ली.’ टाटा द्वारा बाद में इस परियोजना को गुजरात के साणंद ले जाने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने मुख्य परियोजना स्थल के पास वाहनों के कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों को वहां रोकने की कोशिश की. लेकिन जब इन इकाइयों को लगा कि उन्हें यहां रह कर ऑर्डर मिलना मुश्किल हो जाएगा तो वे भी इलाके से हटते चले गए.
राज्य सरकार ने खाली पड़ी जमीन पर केंद्र सरकार के उपक्रम भारत हैवी इलेक्टिकल्स लि. भेल की एक नयी इकाई स्थापित कराने की योजना का मंसूबा बांधा पर यह भी कामयाब नहीं हुआ. भेल के अधिकारियों ने क्षेत्र का सर्वेक्षण कर पाया कि सिंगूर उसकी नयी इकाई के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है. टाटा के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाली तृणमूल कांग्रेस की नेता रेल मंत्री ममता बनर्जी ने वहां 997 एकड़ में से विवाद मुक्त 600 एकड़ जमीन पर रेल कोच कारखाना लगाने का प्रस्ताव किया. पर ममता का प्रस्ताव था कि टाटा उस जमीन का पट्टा वापस कर दें.
ममता ने कहा कि कारखाने के लिए जमीन पर कोई विवाद नहीं होना चहिए. गोपालनगर गांव के रतन घोष ने सरकार से अपनी जमीन का मुआवजा लेने से मना कर दिया था. वह अब अपने परिवार के भरण पोषण के लिए रोजी की तलाश में है. वह चाहते हैं ममता बनर्जी उनके लिए कुछ करें. उन्होंने कहा, ‘ममता को मदद के लिए आना चाहिए. हम उनपर उम्मीद लगाए हैं.’
सिंगूर कृषि जमीन रक्षा समिति समन्वयक बेचराम मन्ना ने लोगों की हालत का उल्लेख किए जाने पर कहा, ‘हमने टाटा की परियोजना का विरोध नहीं किया था. हमारा आंदोलन पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से खेती की जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ था.’ ममता का साथ देने वाले किसान ‘दीदी’ से उम्मीद लगाए हुए हैं. जोयमुल्ला गांव के महादेव दास ने कहा, ‘हम दीदी से पूछना चाहते हैं कि हमारे जैसे लोगों ने जिन्होंने चेक नहीं लिया उनका क्या होगा.’