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मोदी के खिलाफ जांच पर प्रगति रिपोर्ट दाखिल करेगा एसआईटी

गुजरात में 2002 में हुए दंगों के सिलसिले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और 62 अन्य के खिलाफ एक शिकायत की प्राथमिक जांच पर एक दो दिन में प्रगति रिपोर्ट सौंपे जाने की संभावना है.

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गुजरात में 2002 में हुए दंगों के सिलसिले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और 62 अन्य के खिलाफ एक शिकायत की प्राथमिक जांच पर एक दो दिन में प्रगति रिपोर्ट सौंपे जाने की संभावना है.

गोधरा ट्रेन नरसंहार और गोधरा दंगों के बाद के 8 अन्य मामलों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एसआईटी को शीर्ष न्यायालय ने जकिया जाफरी की शिकायत की भी जांच करने का निर्देश दिया था और तीन महीने में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था. जकिया के पति पूर्व सांसद एहसान जाफरी गुलबर्ग सोसायटी के दंगे में 2002 में 39 अन्य लोगों के साथ मारे गये थे. जकिया ने आरोप लगाया था कि मोदी, उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों, पुलिस अधिकारियों और वरिष्ठ नौकरशाहों ने गोधरा बाद के दंगों को शह दी जिनमें एक हजार से ज्यादा लोग मारे गये.

जांच को चुनौती देने वाली याचिका को उच्च न्यायालय द्वारा ठुकराये जाने के एक दिन बाद सूत्रों ने कहा कि एसआईटी प्रमुख आर के राघवन एक दो दिन में उच्चतम न्यायालय में प्रगति रिपोर्ट दाखिल करेंगे क्योंकि तीन महीने की समय सीमा 27 जुलाई को खत्म हो रही है. उन्होंने कहा, ‘‘शीर्ष न्यायालय के अगले आदेश तक शिकायत की जांच जारी रहेगी.’’ एसआईटी ने आज की तारीख तक जकिया, सह शिकायती तीस्ता शीतलवाड और कुछ अन्य गवाहों के बयान दर्ज किये हैं. सूत्रो ने कहा कि जकिया की शिकायत में नामित किसी भी व्यक्ति से पूछताछ नहीं की गयी है.

मोदी के अलावा जकिया ने तत्कालीन मंत्रियों गोर्धन जडाफिया, अशोक भट्ट, पुलिस आयुक्त पी सी पांडे और अन्य को नामित किया है. गुजरात उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पूर्व विधायक कालू मालिवाड द्वारा दाखिल याचिका ठुकरा दी थी जिसमें मोदी और अन्य के खिलाफ जांच को चुनौती दी गयी थी. एसआईटी ने याचिका पर अपने जवाब में उच्च न्यायालय से कहा कि वह मामले की ‘‘प्राथमिक जांच’’ कर रहा है. उसने कहा कि वे जांच कर रहे हैं जो शिकायत दर्ज किये जाने से पहले की जाती है, ताकि शिकायत में लगाये गये आरोपों की सचाई का पता लगाया जा सके.

एसआईटी द्वारा की जा रही जांच पर कानूनी सवाल उठाते हुए मालिवाड ने कहा कि शीर्ष न्यायालय ने एसआईटी को शिकायत को ‘‘देखने’’ को कहा था और वह इसे अपराध दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत जांच का अधिकार नहीं देता क्योंकि इस मामले में कोई प्राथमिकी नहीं है. एसआईटी की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के जी मेनन ने अदालत के समक्ष कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार उनका काम शिकायत में लगाये गये आरोपों के सबंध में सचाई का पता लगाना है. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि एसआईटी को कानून के हिसाब से आवश्यक कदम उठाने की दरकार है, मामले में प्राथमिक जांच की अनुमति है और यही एसआईटी कर रहा है. उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि एसआईटी चूंकि सीधे उच्चतम न्यायालय के अधीन काम कर रहा है अत: कोई राहत नहीं दी जा सकती.

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