फिजाओं में क्रिकेट का रंग घुला है. बड़े-बड़े दिग्गज मैदान में चौके-छक्के लगा रहे हैं. विश्व कप के दौरान जहां छक्कों के उफान से गेंदबाजों की नाक में दम है, वहीं पिछले हफ्ते बॉलीवुड के एक प्रोड्यूसर महोदय ने एनएसडी के छह दिग्गजों (नसीरूद्दीन शाह, अनुपम खेर, ओम पुरी, आशुतोष राणा, राजपाल यादव और गोविंद नामदेव) के साथ मिलकर बॉक्स ऑफिस पर ऐसा ही छक्का लगाने की उम्मीद की.
उन्होंने एक्टिंग की दुनिया के इन जियालों के साथ ही फिल्म की कामयाबी को और पुख्ता करने के लिए हुस्न की मलिका और उनके इस मैच की पूनम पांडेय यानी मल्लिका शेरावत को भी डाल दिया था. लेकिन फिल्म की तकदीर में तो कुछ और ही बदा था. कहते हैं कि कई चीजों का अंजाम उनके आगाज के पहले से ही पता चल जाता है. ऐसा ही बोकाड़िया की डर्टी पॉलिटिक्स के बारे में भी था.
बोकाड़िया ने एनएसडी के छह लोगों को लेकर बॉक्स ऑफिस पर छक्का लगाने की कोशिश की. लेकिन कमजोर कहानी और डायरेक्शन की वजह से फिल्म का हश्र बिल्कुल कमजोर हाथ वाले पुछल्ले बल्लेबाजों के लगने वाले छक्कों की तरह हुआ. जो अक्सर तीस गज के घेरे में ही लपक लिए जाते हैं. यानी फिल्म को वीकेंड काटना मुश्किल हो गया.
फिल्म का यह हश्र एनएसडी के छह दिग्गजों के होने के बावजूद था. अब यह बात समझने की है कि क्रिकेट की दुनिया के विनोद कांबली और निखिल चोपड़ा टाइप बॉलीवुड के ये छह सितारे क्या करने का इरादा रखते थे? राजपाल यादव और आशुतोष राणा के लिए काम बहुत जरूरी है. लेकिन नसीर साहब, अनुपम खेर और ओम पुरी को कहां से अंपायर बनने की उम्र में सलामी बल्लेबाजी करने की पड़ी थी. उनके पास तो स्तरीय किरदारों की कमी नहीं. ओम पुरी का रसिक बलमा अंदाज भी गले में अटक गया.
फिर यह जगजाहिर बात है कि पूनम पांडेय ने इंडिया की जीत पर कपड़े उतारने की बात कही थी. लेकिन उन्हें न यह करने का मौका मिला, और न ही किसी ने उन्हें ऐसा करने दिया. उसका उन्हें बहुत फायदा भी मिला और आज तक उनका जलवा कायम है. लेकिन पिछले विश्व कप के हीरो रहे युवराज सिंह बीच में आउट ऑफ फॉर्म रहे तो उन्हें इस बार मौका नहीं मिला.
ऐसा ही हश्र इन दिग्गजों का भी हुआ. अतीत में उन्होंने भले ही कितने भी झंडे गाड़े हों. लेकिन पूनम पांडेय वाला असली फायदा तो मल्लिका ले गईं. और बाकी के छह जनाब किसी बी ग्रेड फिल्म के औसत कलाकारों की तरह दिखे और आखिर में यह बात ही दिमाग में आई, "एनएसडी के छह बेचारे..."