सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सबरीमाला मंदिर में दर्शन के लिए सभी उम्र की महिलाएं प्रवेश नहीं कर पाईं, वहीं कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन का दौर जारी है. इस बीच, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इस मामले पर अपनी राय जाहिर करते हुए तर्क दिया है कि अगल रजस्वला अवस्था में महिलाएं जब खून से सना पैड लेकर दोस्त के घर नहीं जातीं तो भगवान के घर कैसे जा सकती हैं.
दरअसल, एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, 'पूजा करना मेरा अधिकार है, लेकिन अपवित्र करना नहीं. एक कैबिनेट मंत्री होने के नाते सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नहीं बोल सकती. क्या आप खून से सने सैनिटरी पैड को लेकर अपने दोस्त के घर जाएंगी? नहीं न, तो आप उसे भगवान के घर में क्यों ले जाएंगे.'
हालांकि जब सोशल मीडिया पर केंद्रीय मंत्री के इस बयान पर सवाल उठने लगे तब स्मृति ईरानी ने ट्वीट कर लिखा कि ये फेक न्यूज है और वो जल्द ही इसका वीडियो पोस्ट करेंगी.#WATCH Union Minister Smriti Irani says," I have right to pray,but no right to desecrate. I am nobody to speak on SC verdict as I'm a serving cabinet minster. Would you take sanitary napkins seeped in menstrual blood into a friend's home? No.Why take them into house of God?" pic.twitter.com/Fj1um4HGFk
— ANI (@ANI) October 23, 2018
कुछ ही देर बाद स्मृति ईरानी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक नया वीडियो डाला. स्मृति ईरानी का दावा है कि इस वीडियो में पूरा बयान है. वीडियो के मुताबिक स्मृति अपने एक अनुभव को साझा कर रही थी. इस वीडियो में वह बता रही हैं कि कैसे एक अग्नि मंदिर में धार्मिक रीति-रिवाज की वजह उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया गया था. उन्होंने बताया कि इस रिवाज की वजह से उन्हें मुंबई के अंधेरी के फायर टेंपल के बाहर उन्हें खड़ा होना पड़ा था.Fake news ...... calling you out on it. Will post my video soon. https://t.co/ZZzJ26KBXa
— Smriti Z Irani (@smritiirani) October 23, 2018
Sharing link of my interaction at Young Thinkers’ Conference. https://t.co/cdGr8u8DcE
— Smriti Z Irani (@smritiirani) October 23, 2018
एक दूसरे ट्वीट में स्मृति ईरानी ने कहा कि वे जरथुस्त्र समुदाय की भावनाओं का सम्मान करती हैं, और दो जरथुस्त्र बच्चों की मां होने के बावजूद अपने पूजा के अधिकार के लिए अदालत नहीं जाती है. उन्होंने कहा कि पारसी या गैर पारसी रजस्वला महिलाएं भी एक अग्नि मंदिर में नहीं जाती हैं, चाहे वो किसी भी उम्र की हो.
गौरतलब है कि सप्रीम कोर्ट के आदेश पर 10 से 50 वर्ष (रजस्वला आयु वर्ग) आयु की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध हटाए जाने के बाद सबरीमाला मंदिर के कपाट सभी महिलाओं के लिए खोल दिए गए थे. जिसे सोमवार रात बंद कर दिया गया. हालांकि, मंदिर के गर्भगृह तक रजस्वला महिलाओं को प्रवेश नहीं कराया जा सका.
सबरीमाला मंदिर के कपाट खुलने के दिन से विभिन्न हिंदुवादी संगठन परंपरा पर हमला बता कर प्रदर्शन करते रहें. इस दौरान 10-50 आयुवर्ग की महिलाओं ने मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने का प्रयास भी किया. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इन्हें रोक दिया. इस दौरान हिंसक झड़पें भी हुईं.
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह केरल के सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले उसके फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर अब सुनवाई 13 नवंबर को करेगा.