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Exclusive: बांग्लादेश भेजने के लिए गायों पर तस्करों की बर्बरता

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह गाय, बछड़ों के पहले पैर बांध कर उन्हें पूरी तरह बेबस कर दिया जाता है. फिर उन्हें नदी के पानी में धकेल कर केले के दो तनों में उनका सिर कस दिया जाता है. ये इसलिए किया जाता है कि सिर ही सिर्फ पानी से बाहर रहे और ऑक्सीजन मिलते रहने की वजह से गाय की मौत ना हो. फिर उसके ऊपर कचरा आदि भी डाल दिया जाता है. ये इसलिए किया जाता है कि बाहर से देखने पर ऐसा ही लगे कि नदी में कचरा बह रहा है. 

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गाय की हो रही तस्करी
गाय की हो रही तस्करी

बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स की ओर से सीमा पर कड़ी चौकसी बरतने की वजह से जमीन के रास्ते बांग्लादेश को गाय-बैल-बछड़ों की तस्करी होना लगभग बंद हो गया है. हालांकि पशु तस्कर फिर भी बाज नहीं आ रहे हैं. 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' वाली कहावत पर चलते हुए ये तस्कर अब जमीन को छोड़ नदी के रास्ते पशुओं की तस्करी कर रहे हैं. लेकिन इसके लिए वो गाय-बैल-बछड़ों के ऊपर जो बर्बरता कर रहे हैं, उसे देखकर किसी का भी कलेजा मुंह को आ सकता है. पशु तस्करों की इन अमानवीय हरकतों को परत दर परत बेनकाब करने वाला वीडियो आज तक के पास मौजूद है.
 
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह गाय, बछड़ों के पहले पैर बांध कर उन्हें पूरी तरह बेबस कर दिया जाता है. फिर उन्हें नदी के पानी में धकेल कर केले के दो तनों में उनका सिर कस दिया जाता है. ये इसलिए किया जाता है कि सिर ही सिर्फ पानी से बाहर रहे और ऑक्सीजन मिलते रहने की वजह से गाय की मौत ना हो. फिर उसके ऊपर कचरा आदि भी डाल दिया जाता है. ये इसलिए किया जाता है कि बाहर से देखने पर ऐसा ही लगे कि नदी में कचरा बह रहा है. 



असम के धुबरी जिले के झापसाबारी इलाके में गायों की बांग्लादेश को तस्करी के लिए ये तरीका धड़ल्ले से अपनाया जा रहा है. गाय समेत तमाम पशुओं के ऊपर कोई खास पहचान या कोड भी छाप दिए जाते है. ये इसलिए किया जाता है कि सरहद पार पहुंचने पर पशु उसी कारोबारी तक पहुंचे जिसके लिए उसकी तस्करी की जा रही है. स्थानीय नागरिकों के मुताबिक बीएसएफ जवानों की आंखों से बचाकर ये तस्करी की जाती है. एक अनुमान के मुताबिक झापसाबारी से ही हर दिन 300-400 गायों को नदी के रास्ते बांग्लादेश भेजा जाता है.
 
तस्कर इन गायों को असम और बांग्लादेश के पशु व्यापारियों से खरीदते हैं. ज्यादातर गाय उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा से सड़क के रास्ते लाई जाती हैं. पहले इन्हें पश्चिम बंगाल-असम सीमा पर अनलोड किया जाता है. फिर तस्कर तय करते हैं कि गायों को बांग्लादेश कैसे भेजा जाए. नदी से तस्करी के अलावा जमीन के रास्ते भी गायों को सीमा टपा कर बांग्लादेश भेजा जाता है. हालांकि जमीनी सीमा पर चौकसी अधिक होने की वजह से इस रास्ते तस्करी पर काफी हद तक रोक लग गई है.
 
स्थानीय लोग इन दिनों गाय तस्करों की अमानवीय हरकतों के विरोध में खुल कर सामने आने लगे हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक ये तस्कर इतने बेखौफ हैं कि रोके जाने पर कई बार बीएसएफ से भी भिड़ जाते हैं. लोगों का कहना है कि हाल के दिनों में गायों की बांग्लादेश को तस्करी बढ़ गई है.
 
बता दें कि आज तक की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने बीते साल भी खुफिया कैमरों के साथ असम का रुख कर गाय तस्करी की कई परतों को खोला था. तब ये सामने आया था कि बांग्लादेश में भारतीय गायों की मुंह मांगी कीमत मिलती है. एक अनुमान के मुताबिक भारत से हर साल करीब साढ़े तीन लाख गायों को चोरी छिपे बांग्लादेश सीमा पार करवाकर बेचा जाता है. तस्करी का सालाना कारोबार 15 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का है. गृहमंत्रालय के मुताबिक साल 2014 और 2015 के दौरान बीएसएफ ने 34 गाय तस्करों को मुठभेड़ में मार गिराया.

असम गाय तस्करी का हॉट स्पॉट है. यहां से बांग्लादेश की करीब 263 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. यही बॉर्डर असम से गायों को बांग्लादेश पहुंचाने का रूट बनता है. यहां गाय की औसत कीमत 55 हजार रुपये तक होती है. असम बॉर्डर पार करवाते ही बांग्लादेश में गाय की कीमत 1 लाख रुपये तक हो जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बांग्लादेश में बीफ की काफी डिमांड है. इसी बात का मुनाफा गोतस्कर उठाते हैं.

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