गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में आरोपी डीआईजी डीजी बंजारा और अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के डीएसपी नरेंद्र अमीन को जमानत देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अभय एम थिप्से ने सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की नए सिरे से जांच की जरूरत बताई है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए इंटरव्यू में जस्टिस थिप्से ने कहा कि सोहराबुद्दीन शेख मामले में जिस तरह से कई हाईप्रोफाइल लोगों को रिहा कर दिया गया, कानूनी प्रक्रिया में कई विसंगतियां दिखीं, गवाहों के दबाव या धमकी के असर में होने के लक्षण आदि दिखे, वह न्याय तंत्र की विफलता है. जस्टिस थिप्से पिछले साल मार्च में इलाहाबाद हाईकोर्ट से जज के रूप में रिटायर हुए हैं.
फैसले में दिखी गड़बड़
जस्टिस अभय एम थिप्से ने अपने रिटायरमेंट के लगभग सालभर बाद कहा है कि जज लोया की मौत के बाद उपजे हालात के मद्देनजर उन्होंने सोहराबुद्दीन केस में जज लोया और अन्य जजों द्वारा दिए गए फैसलों को दोबारा पढ़ा था और यह समझने की कोशिश की थी कि उसमें सबकुछ सामान्य है या कुछ असामान्य. जस्टिस थिप्से ने कहा कि उन्हें इस मामले में कुछ गड़बड़ी नजर आई है जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट को अपने समीक्षा अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए, जरूरी हो तो स्वत: संज्ञान लेते हुए फिर से जांच के आदेश देने चाहिए.
स्पेशल सीबीआई कोर्ट के आदेश में कई बेतुकी विसंगतियां पाए जाने की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कोर्ट को ऐसा लगता था कि अपहरण हुआ है और एनकाउंटर फर्जी है, फिर भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को रिहा कर दिया गया. उन्होंने कहा, 'आपको यह लगता था कि शेख का अपहरण हुआ. आपको यह भी लगता था कि यह फर्जी एनकाउंटर है. आपको यह भी लगता था कि उसे अवैध तरीके से फार्महाउस में रखा गया. लेकिन आपको यह नहीं लगा कि वंजारा (गुजरात के तत्कालीन डीआईजी), दिनेश एमएन (तब राजस्थान में एसपी) और राजकुमार पंडियन (तब गुजरात में एसपी) इसमें शामिल हो सकते हैं. भला कांस्टेबल और इंसपेक्टर स्तर के अधिकारी शेख से कैसे संपर्क रख सकते हैं?'
उन्होंने कहा कि कई आरोपियों का यह मानते हुए रिहा कर दिया गया कि उनके खिलाफ साक्ष्य कमजोर हैं, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने यह पाया कि इनके आधार पर ही कुछ आरोपियों पर मामला चलाया जा सकता है.
जज लोया की सीडीआर देखी जाए
जस्टिस थिप्से ने कहा कि जज लोया की मौत के बाद उपजे विवादों के संदर्भ में उन्होंने यह पढ़ा कि गवाह अपने बयान से मुकर रहे थे. केस में बढ़ती उलझनों को देखकर ही उन्होंने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ में दिए गए आदेशों को पढ़ा तो पाया कि उसमें कई असामान्य चीजें हैं. हालांकि, जस्टिस थिप्से ने जज लोया की मौत पर कोई टिप्पणी तो नहीं की लेकिन इतना जरूर कहा कि जज लोया की सीडीआर (फोन कॉल डिटेल्स रिपोर्ट) को देखा जाना चाहिए.
लोया को क्यों हटाया गया
जज लोया को सीबीआई कोर्ट का स्पेशल जज बनाए जाने पर उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में रजिस्ट्री नियुक्त होने पर आमतौर पर किसी को भी तीन साल से पहले नहीं हटाया जाता है, जबतक कि कोई स्पेशल वजह न हो लेकिन जज लोया को तीन साल का टर्म पूरा होने से पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्री से हटाकर सीबीआई कोर्ट का स्पेशल जज बना दिया गया था.
जस्टिस थिप्से ने कहा कि जज लोया की इस पद पर तैनाती से पहले जज जे टी उतपत को आनन-फानन में हटाया गया था. उन्होंने भी तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया था. जस्टिस थिप्से के मुताबिक ऐसी विशेष परिस्थितियों में भी सुप्रीम कोर्ट को नहीं बताया गया था.
जस्टिस थिप्से ने कहा कि वह वंजारा को जमानत नहीं देना चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट लंबे समय तक कैद में रहने के आधार पर अन्य आरोपियों को जमानत दे चुका था और सर्वोच्च न्यायालय के विपरीत जाने की परंपरा नहीं रही है.