पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज शुक्रवार को पहली पुण्यतिथि है. दिल्ली स्थित उनके स्मृति स्थल ‘सदैव अटल’ पर आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई बड़े नेता श्रद्धांजलि देने पहुंचे. पिछले साल 16 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद वाजपेयी का निधन हो गया था.
कद्दावर राजनेता और अच्छा वक्ता होने के साथ-साथ वाजपेयी एक उच्चकोटि के कवि भी थे. उन्होंने कई कविताएं लिखीं और इसे कई मंचों पर पढ़ा भी. उनका कविता संग्रह 'मेरी इक्वावन कविताएं' बेहद चर्चित पुस्तक है. वाजपेयी को 2014 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था.
वाजपेयी पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने तब उनकी सरकार सिर्फ 13 दिनों तक ही चल पाई थी. 1998 में वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने और यह सरकार 13 महीने तक चली थी. 1999 में वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और 5 सालों का कार्यकाल पूरा किया. 2004 के बाद तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली थी.
पहली कविता
वाजपेयी की आवाज में सुनिए कविता 'अमर आग' का पाठ
दूसरी कविता
वाजपेयी की कविता 'मौत से ठन गई' उनकी ही आवाज में
तीसरी कविता
'हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा'...सुनें अटल बिहारी वाजपेयी की कालजयी रचना
वाजपेयी की कई रचनाओं में से उनकी चुनिंदा कविताएं.
1: कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
2. दो अनुभूतियां
-पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
-दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.
3.एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया.