उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में बुधवार को जमीनी रंजिश को लेकर हुए आपसी विवाद में जमकर खूनी संघर्ष हुआ. इस वारदात में 10 लोगों की मौत हो गई. घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है जिसमें कुछ की स्थिति गंभीर बनी हुई है. घटना ग्रामसभा मूर्तिया के गांव उम्भा की है. यहां के प्रधान ने दो साल पहले वहीं पर लगभग 100 बीघे जमीन खरीदी जिस पर अपने समर्थकों के साथ कब्जा करने गया था. स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया. इसके बाद बवाल हो गया. इसमें 3 महिलाओं समेत 10 लोगों की मौत हो गई.
स्थानीय लोगों की मानें तो विवाद के दौरान आपस में असलहे से फायरिंग और गड़ासा चलने से कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. ग्रामीणों के मुताबिक प्रधान पक्ष और गांव के दूसरे पक्ष को लेकर जमीन का विवाद था. बुधवार की दोपहर जमीन विवाद को लेकर बहस शुरू हुई जिसने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया. देखते ही देखते खेत में लाशें बिछ गईं. मामला ग्राम प्रधान के 100 बीघे जमीन का ही नहीं है. पूरा मामला देखें तो विवाद यहां की मुख्य रूप से दो जातियों के बीच काफी अरसे से जारी था. तीसरा पक्ष यहां का राजस्व विभाग है जिसे कई वर्षों से इस विवाद की जानकारी थी लेकिन आंखें मूंद कर मानो इसी दिन का इंतजार हो रहा हो.
उम्भा गांव में 200 बीघे जमीन का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है. इस जमीन पर कब्जे को लेकर गुर्जर (भूर्तिया) और गोड़ बिरादरी के लोग गाहे-बगाहे आमने सामने आते रहे हैं. अब तक मामला बीच बचाव से सुलझ जाया करता था लेकिन बुधवार को ऐसा नहीं हुआ और दोनों जातियों की लड़ाई ने हिंसक रूप ले लिया. इस विवाद के केंद्र में उम्भा का प्रधान मुख्य रूप से शामिल है जिसके लोग बुधवार को असलहों के साथ खेत पर कब्जा करने गए थे. प्रधान का नाम यज्ञदत्त सिंह है. पिछले साल यज्ञदत्त ने अपने और घरवालों के नाम लगभग 100 बीघे जमीन की रजिस्ट्री कराई थी. बुधवार को इसका काफिला जब खेतों की ओर निकला तो इनका ध्यान 200 बीघे जमीन पर जुताई का था. इसके विरोध में गोड़ जाति के लोग खेतों में डट गए और मामला खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया.
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि बुधवार लगभग 11 बजे यज्ञदत्त सिंह 30-32 ट्रालियों के साथ विवादित खेत में पहुंचा. उसके साथ दो सौ गुर्जर बिरादरी के लोग थे. इन लोगों ने विवादित जमीन पर जुताई शुरू कर दी. इसकी जानकारी गोड़ बिरादरी के लोगों को मिली तो उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया. घटना की भनक लगते ही कुछ गोड़ बिरादरी के लोग खेतों में जमा हो गए थे लेकिन संघर्ष बढ़ने के साथ इनका और जमावड़ा हो गया. दोनों पक्ष के लोग आमने सामने आ गए और हिंसा बढ़ गई. चर्चा ये है कि गुर्जरों ने असलहे और गड़ासे से हमले किए जबकि गोड़ जाति के लोग पथराव करते रहे और लाठी डंडे विरोधियों पर बरसाते रहे. देखते देखते खेत की जमीन खून से रंग गई और चारों और चीख पुकार मच गई.
राजस्व विभाग और सोसाइटी का खेल
गोड़, गुर्जर के अलावा दो पक्ष और हैं जिनके खेल ने पूरा मामला बिगाड़ दिया. मीडिया में ऐसी चर्चा है कि उम्भा गांव में 600 बीघा जमीन आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी के नाम है. हालांकि इस सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन 1973 में ही समाप्त हो गया था. तब से खेतों का इतना बड़ा हिस्सा एक तरह से विवाद में था कि इसकी मिल्कियत किसके नाम है. एक तरफ गोड़ बिरादरी के लोगों का कहना है कि काफी अर्से से वे इन खेतों की जुताई करते थे और खेती कर उपार्जन करते थे. दूसरी तरफ गुर्जर और ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के पक्षकारों का कहना है कि उन्होंने जमीन खरीदी इसलिए कानूनन जुताई का अधिकार उन्हीं का बनता है. ऐसे में सवाल उठता है कि राजस्व विभाग को जब पता था कि जमीन के इतने बड़े हिस्से पर विवाद है तो उसने इसकी जानकारी प्रशासन को क्यों नहीं की या एहतियात के कदम क्यों नहीं उठाए?
आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी का नाता एक आईएएस से जुड़ रहा है. खबरों के मुताबिक 1989 में इसी जमीन (कुल 600 बीघा) में से 100-100 बीघा जमीन आईएएस अधिकारी, उसकी पत्नी और बेटी के नाम कर दी गई. दूसरा पक्ष यज्ञदत्त सिंह का है जिसने लगभग 100 बीघे जमीन अपने नाम से खरीदी थी. तीसरा पक्ष गोड़ जातियों का है जो काफी पहले से इस पर जुताई करते थे और अपनी मिल्कियत का दावा करते थे. तीनों पक्षों के विवाद के चलते यह मामला कोर्ट में चला गया था और इस पर मुकदमा भी चल रहा था. मामला अभी एसडीएम के यहां लंबित है. सवाल है कि इतना बड़ा विवाद जब सामने था और इतने लोग इसमें शामिल थे तो प्रशासन अपनी कार्रवाई में क्यों ढिलाई बरता रहा?