यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को अपनी संसदीय क्षेत्र रायबरेली में लालगंज रेल कोच फैक्ट्री का उद्घाटन किया और किसानों को नियुक्ति पत्र भी सौंपा. 1,685 करोड़ रुपये की लागत वाले कोच कारखाने का उद्घाटन पिछले एक साल से अधिक समय से लंबित है क्योंकि कारखाने के लिए ली गयी जमीन के मालिक किसानों को मुआवजे का मुद्दा सुलझ नहीं पाया था.
सोनिया गांधी ने रेलवे की एक योजना उतरेठिया-रायबरेली रेल दोहरीकरण ट्रैक का भी शिलान्यास किया. दोनों ही परियोजनाएं लखनऊ डिवीजन से जुड़ी है. वैसे सोनिया के जुलाई दौरे के दौरान ही रेल कोच फैक्ट्री का उद्घाटन होना था, मगर जिन किसानों ने रेल कोच फैक्ट्री के लिए अपनी जमीनें दी थी, उन्हें नौकरी न मिलने के चलते किसानो के विरोध और कई प्रशासनिक अड़चनों के चलते सोनिया ने उस समय उद्घाटन करने से इनकार कर दिया था. इसी के साथ आज काफी दिनों से नौकरी की आस लगाए बैठे रेल कोच फैक्ट्री के निर्माण के लिये अपनी जमीन देने वाले लोगों को वादे के अनुरूप उन के नौकरी के नियुक्ति पत्र भी दिए गए.
रेलवे कोच फैक्ट्री के कोचों को हरी झंडी दिखाने के बाद सोनिया गाँधी ने रायबरेली कें फुरसतगंज स्थित फुटवियर डिजायन एण्ड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट का दौरा करने के साथ-साथ बरवारीपुर में कम लागत की आवासीय इकाइयों की आधारशिला रखी.
रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस मुद्दे को अब सुलझा लिया गया है और रेलवे ने सभी प्रभावित भूमि मालिकों को नौकरी देने का फैसला किया है. सोनिया कोच फैक्टरी का उद्घाटन करने के साथ किसानों को नियुक्ति पत्र भी सौंपा. रेलवे ने कोच निर्माण कारखाने के लिए 541 हेक्टेयर जमीन खरीदी थी जिसमें से 283 हेक्टेयर निजी भूमि मालिकों की है. रेलवे ने कारखाने के लिए अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे के तौर पर करीब 1400 लोगों को नौकरी देने पर सहमति जता दी है. जमीन मालिकों को समूह डी श्रेणी में नौकरी दी जाएगी. रेलवे ने कारखाने के लिए 400 करोड़ रुपये की मांग की तुलना में केवल 150 करोड़ रुपये जारी किये हैं. परियोजना को और तेजी मिली जब तृणमूल कांग्रेस के सरकार से हटने के बाद रेल मंत्रालय कांग्रेस के पास आ गया.
रायबरेली के कोच कारखाने से हर साल करीब 1,000 कोच के निर्माण के साथ डिब्बों की बढ़ती मांगों को पूरा किये जाने की संभावना है. फिलहाल कारखाने में केवल असेंबल करने का काम होता है.
रेलवे कोच फैक्ट्री रायबरेली: एक नजर
रायबरेली स्थित लालगंज रेल कोच फैक्ट्री का यह पुरा प्रोजेक्ट 1685 करोड़ रुपये का है जिस में हर साल एक हजार अत्याधुनिक कोच का निर्माण किया जाएगा. यह कोच हल्के लाइट वेट और स्टेनलेस स्टील के बने होंगे. चेन्नई एवं कपूरथला के बाद इस फैक्ट्री में उत्पादन शुरू होने के बाद रेलवे को कोच की कमी नहीं होगी. इस कोच फैक्ट्री में लिंके हॉफमैन बुश (एलबीएच) एसी कोच का निर्माण किया जाएगा. फर्स्ट फेज में हर महीने लगभग पांच कोच के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. सेकंड फेज में यह संख्या 10 कोच है. रेलवे के विजन 2020 के मुताबिक़ हर साल रेलवे को करीब 6,000 कोचों की जरुरत है. इसी के साथ-साथ वर्तमान मे रेलवे को हर साल करीब 100 नई ट्रेनों को चलाने के लिए 4,000 कोच की जरुरत है. इस जरुरत को काफी हद तक राइ बरेली की यह रेलवे कोच फैक्ट्री पूरा करेगी. कोच फैक्ट्री के साथ यहां मॉडर्न टाउन शिप भी बनाई जा रही है, जो 2013 तक पूरी तरह बनकर तैयार होगी. टाउन शिप में शॉपिंग सेंटर, ऑफिसर क्लब, सेंट्रल स्कूल, सीनियर सेकंडरी स्कूल, स्पोर्ट्स क्लब, ऑडिटोरियम और हास्पिटल जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी. लगभग 550 हेक्टयर में बनने वाले इस फैक्ट्री से लगभग तीन से पांच हजार लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे. जिन लोगों की जमीन का अधिग्रहण किया गया है, उन्हें वरीयता के आधार पर रेलवे ग्रुप डी में सर्विस देगी. लेकिन इस मे रेलवे ने एक उम्र की एक बाध्यता भी राखी है जिस के मुताबिक़ केवल 33 साल के युवको को रेलवे नौकरी देगा. उनकी योग्यता का आकलन कर रेलवे अफसर सी ग्रुप में भर्ती के लिए सिफारिश कर सकेंगे. फैक्ट्री तक मटीरियल लाने के लिए लालगंज रेलवे स्टेशन से यहां तक रेलवे लाइन बिछाने का काम लगभग पूरा हो चुका है.
हालांकि अभी तक कुल 1413 लोग इस बात का दावा कर चुके है की उन की जमीन इस रेल कोच फैक्ट्री के निर्माण के लिए इस्तेमाल मे लाई गई है. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने जमीनों की जांच के बाद जो रिपोर्ट सौपी है उस मे केवल 613 लोग की ही जमीने अधिग्रहित की गई है. यही कारण है की पीछे कुछ महीने से कई किसान इस बात का विरोध भी कर रहे है.
इन लिंके हॉफमैन बुश (एलबीएच) एसी कोच से बदल जाएगी रेलवे की सूरत और सीरत
इन कोच को जर्मनी के लिंके हॉफमैन बुश द्वारा बनाया गया था. इंडियन रेलवे ने इसे पहली बार जर्मनी से आयत करते हुए शताब्दी एक्सप्रेस के लिए सन 2000 में इस्तेमाल मे लाया गया था. रायबरेली मे बनने वाले इन एलबीएच कोच के निर्माण में 1.5 से 2 करोड़ की लागत आयेगी. इन ख़ास तरह के कोचों की लम्बाई 23.54 मीटर और चौड़ाई 3.24मीटर राखी गई है. साथ ही यह कोच स्टील के बने हुए है जिन का औसतन वजन 39.5 टन है. इन कोचों की ख़ास बात यह है की बडे से बडी हादसे के दौरान यह एक दूसरे से अलग नहीं होंगे, न ही एक दूसरे पर चढ़ेंगे. सभी डिब्बों में एडवांस डिस्क ब्रेक लगाए गये है. कोच के अन्दर के इंटीरियर को ले कर विशेष ख़याल रखा गया है. यात्री सुविधा को देखते हुए अन्दर का लुक बेहद आधुनिक और अकरसक रखा गया है. साथ ही इन एलबीएच कोचों मे हाई कैपेसिटी वातानुकूलित सिस्टम लगाय गया है. कोच के दरवाजे स्लाइडर पर होंगे. सभी कोच में पानी सप्लाई की विशेष व्यवस्ता की गई है. एलबीएच कोच मे आधुनिक शौचालय बनवाय गये है. इंडियन और पाश्चात्य पद्दति के शौचालायों का निर्माण कोच एय दोनों तरफ किया गया है.
इस फेक्टरी की शुरुवात की राह इतनी आसान नहीं थी
राहुल गांधी के हाल के अमेठी दौरे के आखिरी दिन उनके काफिले का घेराव किया गया था. घेराव करने वाले किसानो की मांग थी की उन्हे भी अपनी जमीनों के बदले नौकरी दी जाए. इसी के साथ अमेठी के जगदीशपुर में भी रायबरेली रेल कोच फैक्ट्री के गार्ड और मजदूरों ने राहुल गांधी से नाराज़गी दिखाते हुए शिकायत की थी. उनकी शिकायत थी कि उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है. यही कारण है की जुलाई में होने वाले इस फेक्ट्री के उद्घाटन को नवंबर तक टाल दिया गया.