लोकसभा चुनाव में करारी हार और यूपीए के अस्त-व्यस्त होने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अब महागठबंधन की ओर कदम बढ़ाती नजर आ रही हैं. कांग्रेस अध्यक्षा ने पहली बार मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की पहल की है. यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण बिल पर हर ओर से निशाने पर है, जबकि कांग्रेस राजनीति में अपनी नई जमीन तलाश रही है.
दरअसल, बिहार और यूपी के विधानसभा उपचुनाव में महागठबंधन की ताकत ने उस नए राजनीतिक समीकरण को पुख्ता किया है, जिसके एक छोर पर बीजेपी है तो दूसरी छोर पर तमाम बीजेपी या यह कहें कि मोदी विरोधी पार्टियां. दिल्ली में बीजेपी की हार ने भी इस नए समीकरण को हवा दी है. ऐसे में सोनिया गांधी ने गुरुवार को विपक्षी एकता की ओर कदम बढ़ाया और पार्टी सांसदों के साथ बैठक में संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू को निशाने पर लिया.
रेल बजट से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेसी सांसदों के साथ बैठक के लिए एनसीपी, मुस्लिम लीग, आम आदमी पार्टी, लेफ्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, केरल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को विपक्षी एकता के लिए मिलने का न्यौता भेजा. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के मुद्दे पर एकजुट होने की बात करते हुए सोनिया ने वेंकैया नायडू को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के वोट आफ थैंक्स के दौरान वेंकैया नायडू के लोकसभा में दिया गया मर्यादा की सीमाएं लांघने वाला था.
सदन में जमकर हुआ हंगामा
खुद की बजाय गैर कांग्रेसी विपक्ष पर की गई वेंकैया नायडू की टिप्पणी को मुद्दा बनाकर सोनिया ने सरकार पर दबाव बढ़ाने की रणनीति बनाई है. सूत्रों के मुताबिक, बैठक में सोनिया ने दो टूक कहा कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जैसे मुद्दे पर देश हित में सभी को मिलकर काम करना चाहिए. उन्होंने ऐलान किया कि वैंकैया के खेद जताने तक रेल बजट पेश नहीं होने देंगे. गुरुवार को इसका असर लोकसभा और राज्यसभा में देखने को भी मिला. लोकसभा और राज्यसभा को कुछ देर के लिए स्थगित भी करना पड़ा, जिसके बाद रेल बजट के कारण वक्त की नजाकत को समझते हुए वेंकैया ने लोकसभा में सफाई दी.
अपनी सफाई में वेंकैया ने कहा कि उनका मकसद किसी पार्टी या व्यक्ति को ठेस पहुंचाना नहीं था. इससे पहले वेंकैया ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद सीपीआई को कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स बताया था और राहुल गांधी समेत तमाम विपक्ष पर खूब चुटकी ली थी.
गौरतलब है कि 2004 में सोनिया ने धीरे-धीरे सहयोगियों को जोड़कर यूपीए का कुनबा बनाया और बड़ा किया. लेकिन 2014 आते-आते पूरा कुनबा पूरी तरह बिखर गया. मौजूदा समय में खुद कांग्रेस भी पूरी तरह से बिखर गई है. ऐसे में सोनिया ने मौका पाकर एक बार फिर पहल की है, लेकिन सवाल यह है कि सोनिया सबको जोड़ने की कोशिश राहुल की गैरमौजूदगी में कर तो रही हैं, लेकिन क्या राहुल की मौजूदगी और नेतृत्व में सबको जोड़ना कांग्रेस के लिए आसान होगा.