कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 1984 के सिख विरोधी दंगे के एक मामले में दस्तावेजी साक्ष्य के तौर पर अमेरिकी अदालत में अपने पासपोर्ट की प्रति जमा करने से इनकार कर दिया है. इसके लिए उन्होंने निजी सुरक्षा और गोपनीयता के आधार पर भारत सरकार की ओर से की गई मनाही का हवाला दिया है.
अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज ब्रायन कोगन ने पिछले महीने सोनिया गांधी से 7 अप्रैल तक किसी तरह का दस्तावेजी सबूत देने को कहा था. ताकि अदालत अमेरिका में उनकी मौजूदगी को लेकर पुष्टि कर सके. अदालत का यह आदेश सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) नामक संगठन की ओर से दायर मुकदमे के सिलसिले में आया है जिसमें दावा किया गया है कि जब सोनिया गांधी पिछले साल सितंबर में अपनी स्वास्थ्य जांच कराने के लिए कथित रूप से शहर के मेमोरियल स्लोन-कैटरिंग कैंसर सेंटर में आईं थीं, तब उन्हें समन भेजे गए थे.
सोनिया के खिलाफ यह मामला इस विषय पर आधारित है कि क्या संगठन के दावे के मुताबिक उन्हें 9 सितंबर को समन भेजा गया था और क्या वह उस समय अमेरिका में नहीं थीं, जैसा कि उन्होंने दावा किया है. एसएफजे ने 1984 के दंगों में कथित भूमिका के लिए कमल नाथ, सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर समेत कांग्रेस पार्टी के नेताओं को मुकदमे से बचाने में कथित भूमिका को लेकर सोनिया से क्षतिपूर्ति की मांग की है. सोनिया के अटार्नी रवि बत्रा ने सोमवार को अदालत में कहा कि उनकी मुवक्किल के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है.
बत्रा ने अदालत को सबूत के तौर पर सोनिया के दस्तखत वाला 5 अप्रैल का एक पत्र दिया है. जिसमें उन्होंने लिखा है कि मेरी यात्राओं का खुलासा करने के संबंध में, जिनका विवरण पासपोर्ट पर है, भारत सरकार ने मुझे सूचित किया है कि वे इस तरह की जानकारी का खुलासा करने की इजाजत नहीं देंगे.
बत्रा ने अदालत में कहा कि उन्हें सप्ताहांत में सूचित किया गया कि भारत सरकार ने 67 वर्षीय सोनिया की निजी सुरक्षा को लेकर और उनकी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल तरीकों को गोपनीय रखने के लिहाज से उनके पासपोर्ट को जारी करने की अनुमति नहीं दी है. उन्होंने कहा, जिस तरह हमारी सरकार के सीक्रेट सर्विस और डिप्लोमेटिक सिक्योरिटी एजेंटों को अपने तरीकों और पद्धतियों को गोपनीय रखना जरूरी होता है, ऐसा ही भारतीय अधिकारियों को उन लोगों के संबंध में करना होता है जिनकी सुरक्षा का प्रभार उन पर है.
बत्रा ने कहा कि सोनिया गांधी अपने खिलाफ संगठन द्वारा दायर मुकदमे को अंतिम स्तर तक पहुंचाकर इसके समाधान के लिए हरसंभव सहयोग करने को तैयार हैं बावजूद इसके कि वह अमेरिका में नहीं थीं. एसएफजे के कानूनी सलाहकार जी एस पन्नुन का आरोप है कि भारत की सरकारों ने 1984 के पीड़ितों के न्याय पाने के प्रयासों में अवरोध पैदा किया है.