भूमि अधिग्रहण बिल पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की चिट्ठी का जवाब दे दिया है. सोनिया ने कहा, आपकी सरकार गरीब विरोधी है. गडकरी ने इस विधेयक पर किसी भी मंच पर खुली बहस की चुनौती देते हुए सोनिया गांधी और अन्ना हजारे को चिट्ठी लिखी थी.
सोनिया गांधी ने गडकरी को जवाब दिया, 'आपकी सरकार पूरी तरह किसान विरोधी और गरीब विरोधी है.' उन्होंने गडकरी के पत्र में लिखी बातों को आधा सच बताते हुए कहा कि मैं इसे देखकर हैरान हूं और इसमें कोई तर्कसम्मत बात नहीं है.
सोनिया गांधी ने छह पेज पत्र लिखकर गडकरी को जवाब दिया है. पेश हैं उनके पत्र के कुछ अंश
मैं आपके पत्र में अर्धसत्यों और कुव्याख्याओं का प्रदर्शन देखकर चकित रह गई. वैसे मुझे चकित होना नहीं चाहिए था, तार्किक और प्रभावित कर सकने वाली दलीलों के अभाव में आपकी सरकार तो ऐसा करने की आदी ही है.
अपने पत्र में आपने भूमि अधिग्रहण में प्रस्तावित बदलावों को यह कहकर जायज ठहराने की कोशिश की है कि इससे गांवों, गरीबों, किसानों और मजदूरों को फायदा होगा. इनसे सिंचाई, रोजगार, औद्योगिक कॉरिडोरों और रक्षा उद्योगों को लाभ होगा. आपके तर्क यह जताने के लिए दिए गए हैं कि ये सब बातें यूपीए सरकार के विपरीत जैसे नरेंद्र मोदी सरकार का नया योगदान है और आपके कानून का विरोध करने वाले किसान-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी हैं.
खेद इस बात का है कि जो कुछ आपने कहा है, वह पूरी तरह निराधार है. इन मुद्दों पर यूपीए और कांग्रेस पार्टी का रिकॉर्ड किसी से कमतर नहीं है और अब तो यह व्यापक रूप से माना जा रहा है कि आपकी सरकार बिल्कुल किसान-विरोधी, गरीब-विरोधी है और मुट्ठीभर निजी पार्टियों को लाभ पहुंचाने के लिए समाज के कमजोर तबकों के हितों का बलिदान कर रही है.
नितिन गडकरी की चिट्ठी के अंश
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ग्रामीण विकास और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. लेकिन कुछ राजनीतिक दल और संगठन राजनीतिक कारणों से इसका विरोध कर रहे हैं. हमारी सरकार गांव, गरीब, किसान और मजदूरों के हित में काम करने वाली सरकार है.
यूपीए सरकार ने जो भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुन:स्थापन अधिनियम,2013 बनाया था, उसमें 13 कानूनों को सोशल इंपैक्ट और कंसेंट क्लाज से बाहर रखा गया था. इनमें सबसे प्रमुख तो कोयला क्षेत्र अधिग्रहण और विकास कानून 1957 और भूमि अधिग्रहण (खदान) कानून 1885, और राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 है. इसके अलावा एटमी ऊर्जा कानून 1962, इंडियन ट्रामवेज एक्ट 1886, रेलवे एक्ट 1989 जैसे कानून प्रमुख हैं. हमने इसमें कुछ और महत्वपूर्ण विषयों को जोड़ा है. जिससे आप सहमत नही हैं. यह आपका अधिकार है. लेकिन हम आपसे पूछना चाहते हैं, क्या किसानों के खेतों को पानी नही मिलना चाहिए? क्या गांवों में समृद्धि नहीं आनी चाहिए? क्या देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण नहीं है? हमने जो बदलाव किए हैं वो इन्हीं विषयों से संबंधित हैं. ग्रामीण विकास, सिंचाई परियोजनाओं और देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हमने बदलाव किए हैं. रक्षा, ग्रामीण बिजली, सिंचाई परियोजनाएं, गरीबों के लिए घर और औद्योगिक कॉरीडोर जैसी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण को सोशल इंपैक्ट और कंसेंट क्लाज से बाहर रखे गए कानूनों की सूची में जोड़ा है.
बदलावों को करते हुए हमने मुआवजे और पुनर्वास से कोई समझौता नहीं किया है. जिन विषयों को हमने इस सूची में शामिल किया है, उसमें से एक भी किसानों के विरोध में नहीं है, बल्कि यह विषय उन्हें समृद्धिशाली बनाने वाले हैं. इंडस्ट्रियल कॉरीडोर दिल्ली या फिर किसी महानगर में नहीं बनेगा. यह ग्रामीण इलाकों से होकर गुजरेगा. इसके तहत अगर ग्रामीण इलाकों में उद्योग लगते हैं तो इसका सीधा फायदा किसानों को होगा. बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा. किसानों के फसलों को उनकी फसलों का सही दाम मिलेगा. जहां कच्चा माल मिलेगा वहां उससे संबंधित उद्योग आने की ज्यादा संभावना है. क्या हमारे ग्रामीण युवाओं को रोजगार देना ठीक नहीं है?.
विपक्षी दलों से बातचीत के बगैर कानून में बदलाव का आरोप आप लगा रहे हैं. यह भी ठीक नहीं है. हमने विज्ञान भवन में सभी राज्यसरकारों के मंत्रियों की बैठक बुलाई थी. जिस बैठक में करीब सभी राज्य सरकारों के प्रतिनिधि मंत्री शामिल हुए. इस विषय में उन राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों के पत्र भी हमारे पास हैं. हमने जो बदलाव किए उन्हीं सरकारों के सुझाव पर किए. इसमें आपकी राज्य सरकारें भी शामिल हैं. यह कानून खेतों, खलिहानों में काम करने वालों और किसानों को समृद्धि बनाने वाला कानून है, गावों में विकास के लिए इस विधेयक का साथ दें. हम इस विधेयक पर आपसे किसी भी मंच पर खुली बहस को तैयार हैं.
नितिन गडकरी
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री